Sunday, 12 October 2014

।। मेरे गुरु।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
***।। राम राम सा।।***

प्रश्न- कल जब मैंने गुरूजी के संदर्भ में एक अनुभव लिखा तो एक संत ने मुझसे सवाल पुछा की...
आपके गुरु कौन है ?

उत्तर- "मेरे गुरु" इस सज्ञा का श्रेय इन कुछ महानुभावों को जाता है...
.........वे निम्नलिखित है......
इन सबको धन्य धन्य कहना चाहता हूँ। क्योंकि "आदि सतगुरुजी महाराज" कहते है...
चले आपणे पाव....
धिन्न सो पंथ बतावे।।

1) भक्ति में लाने का श्रेय -
* श्री.दिपक पटेल - अग्रिम स्थान इन्हे देना चाहिए क्योंकि इन्होने मेरे लिए अपार मेहनत की अगर ये नही होते तो आज मै कहाँ होता यह मै भी नही बता सकता। इन्हे भोजन की छुट्टी एक घंटे की होती थी ये बीस मिनट में भोजन करके घर में बिविबच्चो के साथ आराम से व्यतीत करने के बजाय चालीस मिनिट मेरे दूकान पर व्यतीत करते और मै इनकी कुछ भी न सुनता एक भी न सुनता विरोध करता। फिर भी ये दुसरे दिन मुझे समझाने और हाजिर हो जाते मै चर्चा में इनका मजाक उडाता उसके बावजूद ये बुरा नही मानते और मुझे सतस्वरुप तथा होनकाल की बाते बार बार समझाते।
ये आजकल भारत में नही है अमरिका में है अगर वे नही होते तो आज मै इस भक्ति में शायद होता या नही होता ये बात गुरुमहाराज ही जाने। इसलिए इनको धन्य कहना चाहता हूँ। इनको (दीपक पटेल साहब को) जिन्होंने भेजा वे "बाविस्कर" नाम के एक गराज मेकेनिक थे। उनको भी धन्य। वे ज्यादा दिन तक भक्ति में नही रहे।

2) ने:अन्छर -निजनाम -
यह ने:अन्छर मुझे "कुद्रती" मिला।
क्योकि मुझे तम्बाखू खाने की आदत थी।
रामद्वारा में कोईभी संत मुझे "शब्द" देने को तैयार नही था। उस समय श्री. गांधी बाबा नामके एक गुजराथी संत थे उन्हें गुरूजी ने शब्द देने की अनुमति दे रखी थी लेकिन वे भी गुरूजी के अनुमति के बिना शब्द नही देते थे। साथ में ही श्री. नागतिलक साहब श्री. चौधरी साहब श्री. दीपक साहब ये ज्ञानचर्चा तथा भजन विधि बताते थे।
मेरी बोहोत चाहना थी की कोई मुझे "शब्द" दे लेकिन किसी भी संत को तम्बाखू बीडी खाने पिने वाले जिव को शब्द देने की अनुमति नही थी।
मै बोहोत धारोधार भजन करता था।
मुझे यह देखना था की ....दसवा द्वार कैसे खुलता है ? और साढ़े तीन कोटि रोमावली से भजन कैसे होता है ? अखंड ध्वनी कैसे सुनाई देती है ?
और एक दिन अचानक मुझे कंठ में हृदय में हृदय से नाभि तक "शब्द" मालूम पडा। फिर कुछ दिन बाद बंक नाल में पश्चात् पीठ की मनका तथा मेरु में ...कुछ दिन पश्चात त्रिगुटी में... इस प्रकार मुझे यह "ने:अन्छर" कुद्रती मिला। फिर मेरी तम्बाखू की आदत भी छुट गयी। फिर दसवाँ द्वार भी खुला। ये सारी बाते मुझे आजभी जैसे के वैसे स्पष्ट रूप से याद है।

3) श्रध्देय जिज्ञासुरामजी महाराज -
जिनका मेरे उपर बेहद प्रेम था जिन्होंने मुझे अपना आश्रम मुझे सौपा अपनी गादी आगे चलाने को अनुरोध किया लेकिन मैंने वह नही स्वीकार किया। जो रात दिन मुझे प्रेरणा देते रहे रात बेरात उठकर प्रश्न करते जवाब मांगते पढ़ते पढने के लिए प्रेरित करते नही आया तो समझाते ऐसे -श्रद्धेय बनबाबा महाराज - धनोडा

4) ओम प्रकाश पाण्डेय -
वक्ता के रूप में ज्ञान जिनसे लिया जिन्होंने मुझे रातदिन "बाणीजी महाराज" से किस प्रकार से जुड़े रहना ये सिखाया साखिया/पद/चौपाई/ कवित्त अन्य संतो की बाणी उसकी चाल पढने का तरीका चाल में चढाव उतार उनका उच्चारण कथा को किस प्रकार से कहना/ समयसूचकता/ हाजिर जवाबी/ चर्चा/ साम/दाम/दंड/भेद इन सब बातों से अवगत कराने वाले- आदरणीय ओम प्रकाशजी पाण्डेय इनका भी मै कुछ वर्षो तक एक अविभाज्य अंग बनके रहा इनको भी धन्य है।

5) मा. जगतपाल जी चांडक (प्रवर्तक-रामद्वारा जलगाव)
जीवन का बोहोत कुछ समय/ज्ञान/समझ/सुध बुध/व्यवहार और भक्ति की गहराई जिनसे मैंने सुनी जिनमे मै अटक गया था। इनके परे मुझे "आदि सतगुरुजी महाराज" भी नही दिखाई देते थे इन्होने मुझे स्वयं में न अटकाए हुए रखकर बार बार आदि सतगुरु जी महाराज क्या है ये बताये ही नही बल्कि समझाये आज आदि सतगुरु जी महाराज क्या है ? ये जिनसे मैंने जाना/ पहचाना/परखा उनकी सुदबुध के साथ जुडा रहा और फिर जुदा हुआ और आज यह ज्ञान/दिशा/हिम्मत/सामर्थ्य जिनकी वजह से है। जीवन का ज्यादा समय जिनके साथ व्यतीत किया जिनको मैंने स्वयं गुरु माना जिनके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नही है ऐसे - रामद्वारा जलगाव के प्रवर्तक - श्रद्धेय जगतपाल जी चांडक इनका मेरे जीवन में आदि सतगुरु जी महाराज के बाद का अतुलनीय स्थान है।

इनके अलावा अनेक संतोसे मैंने कुछ ना कुछ सिखा है / प्रेरणा ली है - वे - बोदेगाव के मोहन महाराज / मंगीराम जी/ लच्छीराम जी / गिरधर जी / दयाराम जी / पाटिल साहेब/ हिवरा में पधारने वाले अनेक संतश्रेष्ठ जिनके नाम याद नही लेकिन चेहरे याद है।

इस प्रकार से मुझे ये सभी गुरुदेव के रूप में मिले।
इन सभी महाभागो का हृदय दे धन्यवाद। मेरे लिए ये सभी धन्य है।

शानू भाई
9865282928
9423492193
।। राम राम सा।।

Wednesday, 3 September 2014

कामी कुत्ता

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
***।। राम राम सा।।***

'कामी कुत्ता' तिस दिन।
अंतर रहे उदास।।
'कामी नर' कुत्ता सदा।
छह ऋतू बारह मास।।
......................।। कबीर साहब।।

'कामी कुत्ता'
तिस दिन मतलब एक माह एक ऋतू उसमे 'काम वासना' जागृत होकर वह उस काम में व्यस्त हो जाता है।
लेकिन...
'कामी नर' सदा के लिए कामवासना हृदय में लिए 'कुत्ते की तरह' जीभ से लार टपकाए बारह महीने 'काम वासना' के पीछे पडा हुआ रहता है।

.........................रामस्नेही शानुभाई
09423492193
09765282928

।। राम राम सा।।
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"गणेश" प्रथम पूजनीय कैसे ?

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙

प्रश्न- "गणेश" प्रथम पूजनीय कैसे ?

महिमा जाणी ज्यासी गणराऊ।
प्रथम पूजियत 'नाम' प्रभाऊ।।

गणपति प्रथम पूजनीय बने इसका कारण है की उन्होंने "सतस्वरुपी " राम " नाम" की महिमा जानी और प्रथम पूजनीय बने।

आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज अपने "भुरकी ग्रन्थ" साखि ।।४०।। में भी कहते है.....

भुरकी गजानंद सुन पाई।
कुण बडपण गण ओली।।
पचासक्रोड़ पृथ्वी प्रदक्षिणा।
उभे अंक ए दो ली।।

सभी देविदेवताओं मे जब प्रथम पूजनीय कौन ? इस बात की चर्चा चली तो यह निर्णय हुआ की इस पचासक्रोड़ पृथ्वी को प्रदक्षिणा करके जो प्रथम हरिपुर में पहुंचेगा वह प्रथम पूजनीय माना जायेगा। जब पृथ्वी प्रदक्षिणा की दौड़ चली तो सभी देवी देवता अपने अपने वाहन पर बैठकर पृथ्वी प्रदक्षिणा के लिए निकल पड़े।
विष्णु अपने गरुड पर, ब्रह्मा अपने हंस पर, शिव अपने नंदी पर, इंद्रदेव अपने एरावत पर, हर कोई अपने अपने वाहन पर निकले।
"गणेश" भी अपने चूहें पर निकल पड़े...तो रास्ते में त्रिलोक की सफर करने वाले "देवर्षि नारद" मिले। अनायास ही बातचित के दौरान पृथ्वी प्रदक्षिणा की बात निकली तो "देवर्षि नारद" ने कहाँ सभी देवताओं के गतिमान वाहनों के मुकाबले आपके भारीभरकम शरीर के साथ आपका वाहन कैसे मुकाबला कर पायेगा ?
तो गणेशजी ने उनसे पूछा की ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए ?
तो नारद जी ने उन्हें वही सर्वश्रेष्ठ बिज मंत्र बताया जिसके आधार से यह पचास कोटि योजन पृथ्वी स्थिर हुई है ऐसा "र"कार तथा "म"कार युक्त "राम" नाम लिखो और उसे प्रदक्षिणा करके बैठ जाओ और कोई पूछे तो पृथ्वी स्थिर होनेमे सहाय्यक "राम" नाम की महत्ता बता देना। गणेशजी ने वही किया। "राम" नाम धरती पर लिखकर उसे प्रदक्षिणा करके आकर बैठ गये जब सभी देविदेवता आकर इकठ्ठा हुए तो गणेश जी पहले आकर बैठा हुआ देखकर अचरज हुआ।
जब उन्होंने इस बात का स्पष्टिकरण बताया तो यही निर्णय हुआ की गणेशजी यह सिर्फ प्रथम पूजनीय ही नही तो सबसे श्रेष्ठ बुद्धिमान देवता के रूप में पूजनीय होंगे और इतनाही नही तो रिध्दि सिध्दि भी उनकी सेवामे हमेशा तत्पर रहेगी। इस प्रकार से गणेश-गणपति प्रथम पूजनीय कहलाए गये माने गए।

©सन्दर्भ- सतस्वरुप आनंदपद ने:अन्छर निजनाम ग्रंथ से।

......................रामस्नेही शानूभाई
09423492193
09765282928

।। राम राम सा।।

Tuesday, 2 September 2014

।। गुरु महाराज का शरीर ।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙

।। राम राम सा।।

प्रश्न- आदि सतगुरु महाराज के जन्म के बारे में जानकारी दीजिये.....
(राजस्थान से विपुल और सूरज का प्रश्न था)

कुछ संतो ने गुरुमहाराज के जन्म का वर्णन किया है..लेकिन ....
आदि सतगुरु महाराज का जन्म हुआ ही नही... (मालिक-साहेब-परमात्मा) ने जिस बालक के शरीर में प्रवेश किया उस बालक के शरीर का नाम "सुखराम" ऐसा था...
वह मालिक परमात्मा स्वयं अपनी मर्जी के मालिक हर युग में जीवो के लिए आते है....
इस कलियुग में वे जिस शारीर में आये उसका वर्णन एवम जानकारी

जन्म- समंत १७८३ चैत्र शुध्द ९ - गुरुवार - पुष्य नक्षत्र.

शारीर का त्याग- समंत १८७३ कार्तिक शुध्द - १२ गुरुवार - आश्विन नक्षत्र (दोय घड़ी तड़के)

अंग्रेजी तारीख-
जन्म- 4 अप्रेल, 1726
शरीर त्याग- 31 अक्टूबर, 1816

मृत्युलोक में वास- ९० साल, ६ महीने, २७ दिन.

आदि सतगुरुजी महाराज के शरीर की अधिक जानकारी

पिता- आइदानजी
माता- बगतु बाई
भाई- तुलसा जी
(दूसरा जन्म -गिरधारी)

पत्नी- १) सांख्या की कलु
           २)....................
           ३) जमराज की       भेज्योडी

पुत्र- १) सुजाजी
        २) बगतरामजी
        ३) मानजी

कुल- गुजर गौड़ पंचारिया ब्राह्मण
जन्मस्थान- भरतखंड-मरुधर(राजस्थान)- जोधपुर जिला-बिराई ग्राम
यहाँ से पडोस में एक पहाड़-टीला वहाँ एक पथ्थर पर बैठकर 18 साल भजन किया और मोक्ष का मार्ग खुला किया।

रामद्वारा-जलगाव में उपलब्ध वाणीजी अनुसार यह समग्र जानकारी आदि सतगुरु साहेबजी महाराज के जिवणी से संकलित की गयी है और अधिक जानकारी चाहते हो तो आप रामद्वारा जलगाव के प्रवर्तक गुरूजी से ले सकते हो।

......................शानू भाई

09423492193
09765282928

।। राम राम सा।।
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Sunday, 22 June 2014

।। परम मोक्ष।।

⊙ मिशन सतस्वरूप⊙
****।। परममोक्ष।।****

मोख मोख केता सब कोई।
सो ये मारग होई रे।।
सो परगट किया हम जूग में।
निरख परख लो सोई रे।।
.............................।। आदि सतगुरु।।

वास्तव मैं मोक्ष का रास्ता दसवें द्वार से होकर जाता है। हमारे शरीर के 9 द्वारों से हम परिचित है और इन्ही मैं हम वर्तते है... दो द्वार कानों के छेद है।दो द्वार नाक के छिद्र है| दो द्वार आँखों के छिद्र है| एक द्वार मुंह का छिद्र है| एक द्वार लिंग या योनी का होता| एक द्वार गुदा का होता है| मोक्ष का दसवां द्वार गुप्त है और इसी शरीर मैं है। अगर मनुष्य उसको जान ले और गुरु की बताई साधना कर ले| यदि साधना मैं थोड़ी ऊँचाई प्राप्त कर ले तो जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है| उसके दसवे द्वार खुलकर उसके परे उसे अखंड ध्वनी सुनाई देगी। ये दोनों ज्ञान 'राम' के मंत्र से होते ही जिन्हे केवल सतगुरु से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
यह 'राम' नाम तारक मंत्र है। इसका सुमिरन ब्रह्मा-विष्णू-महेश-शक्ति तथा सभी देवीदेवता करते है।
इसमे "र" कार यह ब्रह्म वाचक अक्षर है और "म" कार यह माया  वाचक अक्षर है। इस माया तथा ब्रह्म के परे वह परमात्मा है। इन दो अक्षरों को श्वास-उश्वास में मथने से इससे "ने:अक्षर" की प्राप्ति होती है और यह "ने:अक्षर" ही सतगुरु की सत्तासे शिष्य के घट में प्रगट होता है। इस "ने:अन्छर" से ही दसवाँ द्वार खुलता है। जगत के सभी मार्ग "होनकाल परब्रह्म" तक ही पहुंचते है। सिर्फ सतगुरु द्वारा "ने:अन्छर" की प्राप्ति किया हुआ जिव ही अपना दसवाँ द्वार खोलकर  होनकाल परब्रह्म के परे "अमरलोक" मे जाता है और अपना "आवागमन" (जन्म-मरण) का चक्र मिटा सकता है।

© संदर्भ ग्रन्थ- "सतस्वरुप आनंदपद ने:अन्छर निजनाम"

।।आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु, सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो, धन्य हो, धन्य हो।।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - रामद्वारा-जलगाव-औरंगाबाद-पुणे.

।। राम राम सा।।

Wednesday, 4 June 2014

।। आदि सतगुरु।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
...।। आदि सतगुरु।।...

प्रश्न - हम सतगुरु सुखरामजी महाराज को
आदि सतगुरु -सर्व आत्माओ के सतगुरु-सर्व सृष्टि के सतगुरु
क्यों कहते है ?

उत्तर - सतगुरु सुखरामजी महाराज जी की "अनभे वाणीजी" में विठ्ठलराव संवाद-कुंडली-६६ में....

"मै सतगुरु हु आद का, आतम का गुरु कवाय।
मेरी महिमा अगम है,
क्या जाने जग माय।।

इस प्रकार से कहा गया है।

वैसे ही ....
"अगाध बोध" ग्रन्थ - चौपाई १५४  में...

"म गुरुदेव सिस्ट सबहिका,
जान मा जाने कोई ।
मोसु मिल्या अगम घर मेलु,
आनंद पद में सोई ।।

इसलिए हम गुरु महाराज को……

मै सतगुरु आद का=आदि सतगुरु,

आतम का गुरु कवाय =सर्व आत्माओ के सतगुरु,

मै गुरुदेव सिस्ट सबहीका=सर्व सृष्टि के सतगुरु

ऐसा संबोधन करते है।

"सतस्वरुप आनंद्पद ने:अन्छर निजनाम ग्रन्थ से"

* आप सभी संतो की जानकारी के लिए *
(उपरोक्त उपाधि की खोज, अभ्यास, मेहनत, लगन का श्रेय गुरु महाराज के प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले हमारे मार्गदर्शक गुरुदेव मा. श्री. जगतपलजी चांडक, प्रवर्तक- रामद्वारा जलगाव इनको जाता है।)

धन्यवाद।

© रामद्वारा-जलगाव
रामस्नेही...शानुभाई...पुणे

।। राम राम सा।।

Saturday, 31 May 2014

समझ सिमरो राम

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⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙

प्राणिया रे
समझ सिमरो राम।
देख बिचार
समझ कर दिल में।
हरि बिन झूठा काम।

आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज
जगत के लोगों को कहते है कि
हे प्राणी तू अपने पूत्र पत्नी
इनके लिये धन कमाता हैं,
यह एक भी तेरे साथ नहीं आएगा,
यह धन सब झुठा है।
इससे तू सदा सुखी होगा
यह तुम्हारा भ्रम हैं।
इसलिए तुम सभी यह झुठे काम
छोड़कर जो सदा के लिए
तुम्हें काल के मुख से निकालता है
ऐसे राम जी का तू
समझकर स्मरण कर।
गुरु महाराज
हंस को चेतावनी देकर समझा रहे है कि
अरे प्राणी
तू समझकर सतस्वरुपी राम का स्मरण कर। अरे प्राणी
ह्रदय में गहराई से विचार करने पर
समझेगा कि हरि के स्मरण बिना
मतलब हरि को पाने के अलावा
सभी झुठा काम हैं।
अरे प्राणी तू जगत में जो जो
मायावी क्रिया कर्म कर रहा है
वे क्रिया कर्म तुझे
काल के मुख में ले जायेगें।

।।आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो धन्य हो।।

।। राम राम।।
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Sunday, 25 May 2014

।। रैदासा।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
          ।। रैदास।।

अब कैसे छूटै
राम नाम रट लागी ।

प्रभु जी,
तुम चंदन हम पानी ,
जाकी अँग-अँग बास समानी ।

प्रभु जी,
तुम घन बन हम मोरा ,
जैसे चितवत चंद चकोरा ।

प्रभु जी,
तुम दीपक हम बाती ,
जाकी जोति बरै दिन राती ।

प्रभु जी,
तुम मोती हम धागा ,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।

प्रभु जी,
तुम तुम स्वामी हम दासा
ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

          है प्रभु !
हमारे मन में जो आपके नाम
की रट लग गई है,
वह कैसे छूट सकती है ?
अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ ।
जो चंदन और पानी में होता है ।
चंदन के संपर्क में रहने से पानी में
उसकी सुगंध फैल जाती है ,
उसी प्रकार मेरे तन मन में
तुम्हारा प्रेम की सुगंध
व्याप्त हो गई है ।
आप आकाश में छाए
काले बादल के समान हो ,
मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ ।
जैसे बरसात में घुमडते
बादलों को देखकर
मोर खुशी से नाचता है ,
उसी भाँति मैं आपके
दर्शन् को पा कर
खुशी से भावमुग्ध
हो जाता हूँ ।
जैसे चकोर पक्षी
सदा अपने चंद्रामा की ओर
ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी
सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए
तरसता रहता हूँ ।
         है प्रभु !
तुम दीपक हो ,
मैं तुम्हारी बाती के समान सदा
तुम्हारे प्रेम जलता हूँ ।
प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल,
पवित्र और सुंदर हो ।
मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ ।
तुम्हारा और मेरा मिलन
सोने और सुहागे के मिलन के
समान पवित्र है ।
जैसे सुहागे के संपर्क से
सोना खरा हो जाता है ,
उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से
शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ ।
हे प्रभु !
तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ ।

।। राम राम सा।।

Tuesday, 13 May 2014

होय नचिता रिजे

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
     ।। राम राम सा।।

जब लग आग लगी है नाही।
तब लग फुका दीजे।।
के सुखराम लग्या फिर पीछे।
होय नचिता रीजे।।

आदि सतगुरु महाराज साहेब कहते है जैस चूल्हे में आग जब तक नही लगती तब तक ही फूँका लगाना पड़ता है। एक बार आग जब पकड़ लेती है तो फिर फूँका देंनेकी जरूरत नही होती।
ठीक उसी तरह भजन की बात है। मुखसे भजन आपको उतनाही करना है जबतक वह अखंड नही होता। एकबार वह अखंड हो गया दसवे द्वार परे पहुंच गया की आपको मुख से भजन करने की जरूरत नही।
फिर तो आपकी स्थिति ऐसी हो जाएगी की
करसे माला न जपु ,
मुख से कहूँ न राम।
मेरा सुमिरन हरी करे,
मै पाउ विश्राम।।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरु जी महाराज साहेब।।

Sunday, 11 May 2014

थे किशा राम ने गावो ?

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। सतस्वरुपी राम।।

एक बार आदि सतगुरु जी महाराज से किसीने प्रश्न किया

प्रश्न - थे किश्या "राम" ने गावो ?

उत्तर - आदि सतगुरु जी महाराज ने जबाब दिया जो उन्हीके शब्दोमे -

पांच जिण तत्त बेराट वो थरपियो।।
विष्णु ब्रह्मा हर पैदास किया।।
पीर और शिव शक्त के उपरे।।
दूज कु ज्ञान का मूल दिया।।
अलख आलेख अल्लाय खुदाय सो।।
काल हुणहार उण राम सारे।।
पलक में मांड नर नार से थरपियो।।
छीनक में सबकु मार डारे।।
कागदा उपरे राम मंडे नही।।
मुख में जीभ पर नाय आवे।।
दास सुखराम ब्रह्म ने रट रह्या।।
संत कोई सुरवा भेद पावे।।
रमता राम सु हेत हम बांधीयो।।
बोलता राम सु प्रीत किन्ही।।
देह आकार का नाम सब परहऱ्या।।
अरध उरध बिच सुरत दीन्ही।।
पांच पच्चीस सु राम न्यारा रहे।।
दिष्ट और मुष्ट में नाय आवे।।
धरण पाताल अस्मान सु अगम है।।
क्रोडा मज संत कोई गम पावे।।
पूरण राम भरपूर सो भर रह्या।।
जाय ब्रह्मंड ररंकार ध्याऊ।।
दास सुखराम शब्द अरूप है।।
जिंग सी धुन सु राम गाऊ।।

नही बाप अर माय।
नही बेनर सुन भैय्या।।
नही देश कुल गाव।
नही किन सरणन रैय्या।।
नही ज्ञान गुरु शीश।
नही आपो तन काया।।
नही वार कछु पार।
नही कहूँ जायर आया।।
ऐसा अद्भुत "राम" है।
जा कु सिवरुं बीर।।
ताकू सुन "सुखराम" कहें।
भजियो दास कबीर।।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।

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Saturday, 3 May 2014

।। भक्ति का फल।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। फलफूल।।

प्रश्न - भक्ति और उसका फल .........विस्तृत कीजिए

उत्तर - आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु,सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज ने सभी भक्तिओंके फल विस्तृत से अलग अलग बताये है।

तपश्चर्या का फल - राजा बनोगे।
तीर्थस्नान का फल - रूपवान काया मिलेगी।
व्रत करोगे - निरोगी काया मिलेगी।
देवी की भक्ति करोगे - स्त्री जन्म मिलेगा।
ब्रह्मा की भक्ति / गायत्री मन्त्र - ब्रह्मा के सतलोक में जाओगे।
एक सौ एक यज्ञ करोगे - इंद्र पदवी पाओगे।
विष्णु / नवधा भक्ति - वैकुण्ठ प्राप्ति
शिव की भक्ति करोगे - कैलास में जाओगे।
शक्ति की भक्ति - शक्ति लोक
क्षेत्रपाल/भेरू/भोपा - यमदूत
नीच कर्म - नर्क में जाओगे।
सोऽहं जाप अजप्पा - पारब्रह्म (होनकाल)

उपरोक्त सभी फल तुरंत नही मिलते। इस जन्म में यह भक्ति करोगे तो मृत्यु पश्चात 43,20,000 साल चौरासी लाख योनी भटकानेके बाद अगले जन्म में यह फल मिलता है।
यह भक्तियाँ करनेके पश्चात आवागमन (जन्म-मरण) नही मिटाता।

जन्म-मरण (आवागमन) मिटाना है तो आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु,सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज का सतस्वरुप विज्ञान धारण करके उनका शरणा लेकर श्वास उश्वास में सतस्वरुपी "राम" नाम का सुमिरन करके अपने शारीर मे बारह कमलोंका छेदन करके बंकनाल (पश्चिम) के रस्ते से दसवाँ द्वार खोलकर पारब्रह्म के परे सतस्वरुप आनंदपद - अमरलोक में जाना होगा वह भी जीवित अवस्था में।
मृत्यु पश्चात नही जीवित अवस्था में।

।। फलफूल के अंग से।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।
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Thursday, 1 May 2014

अष्ट प्रहर

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
   ।। प्रश्न-उत्तर।।

प्रश्न- प्रहर क्या है ?
........कितने है ?

उत्तर- 'प्रहर' समय गिनती का एक प्रमाण है। तिन घंटे के समय को प्रहर (पोहोर) कहते है। कुल अष्टप्रहर है।

मै इस भक्ति में नया था तो अनेक संतो के साथ ज्ञान बटोरने हेतु बैठक जमा लेता था तब एक बार जीग्यसुराम जी महाराज (बन बाबा-रहाड़ी बाबा) ने यह कहावत बताई थी। सुनकर बड़ा मजा आया था और दिमाग में सटीक बैठ गयी।

उनकी समझाने की एक अलग शैली थी। वे ज्ञानचर्चा के समय कहावते मुहावरे इनका प्रयोग जादा करते थे।
तो उन्होंने एक बार चर्चा में कह दिया।

पहले पोहोर 'हर कोई' जागे।
दुसरे पोहोर 'भोगी'।।
तीसरे प्रहर 'चोर' जागे।
चौथे पोहोर 'योगी'।।

फिर उन्होंने समझाया प्रहर आठ होते है। दिन के चार और रात के चार। इन्हे अष्ट प्रहर (आठ पोहोर) कहते है।
अब रहाडी बाबा ने यह बात रात के प्रहर की बताई थी क्योंकि चर्चा का समय रात का था। 

पहले प्रहर हर कोई जागे। शाम - 6 से 9
दुसरे प्रहर भोगी।
रात - 9 से 12
तीसरे प्रहर चोर जागे।
मध्यरात्री - 12 से 3
चौथे प्रहर योगी।
सुबह - 3 से 6

(योगी पुरुष इस चौथे प्रहर को पहला प्रहर भी कहते है)

इस प्रकार से अष्टप्रहर है।

उपरोक्त रात के चार प्रहर और निम्न दिन के चार......

पहला प्रहर - सुबह - 6 से 9
दूसरा प्रहर- सुबह - 9 से 12
तीसरा प्रहर -दोपहर 12 से 3
चौथा प्रहर - दोपहर -3 से 6

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।

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Wednesday, 16 April 2014

◑ भक्तियोग ◐

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
   ।। सुखविलास।।

सूरत शब्द बिजोग।
मन पवना न्यारा रहे।।
ये चारू मिलन संजोग।
'भक्तियोग' याते कहें।।

सूरत शब्द सु मेल।
मन पवना दोनु गहें।।
तो लिव लागे जिण बार।
आठ प्रहर इमरत चवे।।

आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है...
मेरे शब्द और सूरत का वियोग होता था। सुरत और शब्द अलग अलग रहते थे। मन और श्वास भी अलग अलग रहते थे।
सुरत-शब्द-मन और श्वास ये चारो एक जगह मिलते है उसे 'भक्तियोग' कहते है।
सुरत का शब्द से मेल होकर मन और श्वास इन दोनों को पकड़ लेता है। ऐसे चारो मिलने का संयोग होता है उसे 'भक्तियोग' कहते है। 'सतस्वरुपी राम' नाम से जब लव लगेगी आठो प्रहर अमृत टपकने लगेगा।
ऐसा आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।

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