⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। सुखविलास।।
सूरत शब्द बिजोग।
मन पवना न्यारा रहे।।
ये चारू मिलन संजोग।
'भक्तियोग' याते कहें।।
सूरत शब्द सु मेल।
मन पवना दोनु गहें।।
तो लिव लागे जिण बार।
आठ प्रहर इमरत चवे।।
आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है...
मेरे शब्द और सूरत का वियोग होता था। सुरत और शब्द अलग अलग रहते थे। मन और श्वास भी अलग अलग रहते थे।
सुरत-शब्द-मन और श्वास ये चारो एक जगह मिलते है उसे 'भक्तियोग' कहते है।
सुरत का शब्द से मेल होकर मन और श्वास इन दोनों को पकड़ लेता है। ऐसे चारो मिलने का संयोग होता है उसे 'भक्तियोग' कहते है। 'सतस्वरुपी राम' नाम से जब लव लगेगी आठो प्रहर अमृत टपकने लगेगा।
ऐसा आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है।
।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।
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