⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। सतस्वरुपी राम।।
एक बार आदि सतगुरु जी महाराज से किसीने प्रश्न किया
प्रश्न - थे किश्या "राम" ने गावो ?
उत्तर - आदि सतगुरु जी महाराज ने जबाब दिया जो उन्हीके शब्दोमे -
पांच जिण तत्त बेराट वो थरपियो।।
विष्णु ब्रह्मा हर पैदास किया।।
पीर और शिव शक्त के उपरे।।
दूज कु ज्ञान का मूल दिया।।
अलख आलेख अल्लाय खुदाय सो।।
काल हुणहार उण राम सारे।।
पलक में मांड नर नार से थरपियो।।
छीनक में सबकु मार डारे।।
कागदा उपरे राम मंडे नही।।
मुख में जीभ पर नाय आवे।।
दास सुखराम ब्रह्म ने रट रह्या।।
संत कोई सुरवा भेद पावे।।
रमता राम सु हेत हम बांधीयो।।
बोलता राम सु प्रीत किन्ही।।
देह आकार का नाम सब परहऱ्या।।
अरध उरध बिच सुरत दीन्ही।।
पांच पच्चीस सु राम न्यारा रहे।।
दिष्ट और मुष्ट में नाय आवे।।
धरण पाताल अस्मान सु अगम है।।
क्रोडा मज संत कोई गम पावे।।
पूरण राम भरपूर सो भर रह्या।।
जाय ब्रह्मंड ररंकार ध्याऊ।।
दास सुखराम शब्द अरूप है।।
जिंग सी धुन सु राम गाऊ।।
नही बाप अर माय।
नही बेनर सुन भैय्या।।
नही देश कुल गाव।
नही किन सरणन रैय्या।।
नही ज्ञान गुरु शीश।
नही आपो तन काया।।
नही वार कछु पार।
नही कहूँ जायर आया।।
ऐसा अद्भुत "राम" है।
जा कु सिवरुं बीर।।
ताकू सुन "सुखराम" कहें।
भजियो दास कबीर।।
।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।
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