Tuesday, 13 May 2014

होय नचिता रिजे

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
     ।। राम राम सा।।

जब लग आग लगी है नाही।
तब लग फुका दीजे।।
के सुखराम लग्या फिर पीछे।
होय नचिता रीजे।।

आदि सतगुरु महाराज साहेब कहते है जैस चूल्हे में आग जब तक नही लगती तब तक ही फूँका लगाना पड़ता है। एक बार आग जब पकड़ लेती है तो फिर फूँका देंनेकी जरूरत नही होती।
ठीक उसी तरह भजन की बात है। मुखसे भजन आपको उतनाही करना है जबतक वह अखंड नही होता। एकबार वह अखंड हो गया दसवे द्वार परे पहुंच गया की आपको मुख से भजन करने की जरूरत नही।
फिर तो आपकी स्थिति ऐसी हो जाएगी की
करसे माला न जपु ,
मुख से कहूँ न राम।
मेरा सुमिरन हरी करे,
मै पाउ विश्राम।।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरु जी महाराज साहेब।।

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