⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। रैदास।।
अब कैसे छूटै
राम नाम रट लागी ।
प्रभु जी,
तुम चंदन हम पानी ,
जाकी अँग-अँग बास समानी ।
प्रभु जी,
तुम घन बन हम मोरा ,
जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी,
तुम दीपक हम बाती ,
जाकी जोति बरै दिन राती ।
प्रभु जी,
तुम मोती हम धागा ,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी,
तुम तुम स्वामी हम दासा
ऐसी भक्ति करै रैदासा ।
है प्रभु !
हमारे मन में जो आपके नाम
की रट लग गई है,
वह कैसे छूट सकती है ?
अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ ।
जो चंदन और पानी में होता है ।
चंदन के संपर्क में रहने से पानी में
उसकी सुगंध फैल जाती है ,
उसी प्रकार मेरे तन मन में
तुम्हारा प्रेम की सुगंध
व्याप्त हो गई है ।
आप आकाश में छाए
काले बादल के समान हो ,
मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ ।
जैसे बरसात में घुमडते
बादलों को देखकर
मोर खुशी से नाचता है ,
उसी भाँति मैं आपके
दर्शन् को पा कर
खुशी से भावमुग्ध
हो जाता हूँ ।
जैसे चकोर पक्षी
सदा अपने चंद्रामा की ओर
ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी
सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए
तरसता रहता हूँ ।
है प्रभु !
तुम दीपक हो ,
मैं तुम्हारी बाती के समान सदा
तुम्हारे प्रेम जलता हूँ ।
प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल,
पवित्र और सुंदर हो ।
मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ ।
तुम्हारा और मेरा मिलन
सोने और सुहागे के मिलन के
समान पवित्र है ।
जैसे सुहागे के संपर्क से
सोना खरा हो जाता है ,
उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से
शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ ।
हे प्रभु !
तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ ।
।। राम राम सा।।
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