Saturday, 31 May 2014

समझ सिमरो राम

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⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙

प्राणिया रे
समझ सिमरो राम।
देख बिचार
समझ कर दिल में।
हरि बिन झूठा काम।

आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज
जगत के लोगों को कहते है कि
हे प्राणी तू अपने पूत्र पत्नी
इनके लिये धन कमाता हैं,
यह एक भी तेरे साथ नहीं आएगा,
यह धन सब झुठा है।
इससे तू सदा सुखी होगा
यह तुम्हारा भ्रम हैं।
इसलिए तुम सभी यह झुठे काम
छोड़कर जो सदा के लिए
तुम्हें काल के मुख से निकालता है
ऐसे राम जी का तू
समझकर स्मरण कर।
गुरु महाराज
हंस को चेतावनी देकर समझा रहे है कि
अरे प्राणी
तू समझकर सतस्वरुपी राम का स्मरण कर। अरे प्राणी
ह्रदय में गहराई से विचार करने पर
समझेगा कि हरि के स्मरण बिना
मतलब हरि को पाने के अलावा
सभी झुठा काम हैं।
अरे प्राणी तू जगत में जो जो
मायावी क्रिया कर्म कर रहा है
वे क्रिया कर्म तुझे
काल के मुख में ले जायेगें।

।।आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो धन्य हो।।

।। राम राम।।
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Sunday, 25 May 2014

।। रैदासा।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
          ।। रैदास।।

अब कैसे छूटै
राम नाम रट लागी ।

प्रभु जी,
तुम चंदन हम पानी ,
जाकी अँग-अँग बास समानी ।

प्रभु जी,
तुम घन बन हम मोरा ,
जैसे चितवत चंद चकोरा ।

प्रभु जी,
तुम दीपक हम बाती ,
जाकी जोति बरै दिन राती ।

प्रभु जी,
तुम मोती हम धागा ,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।

प्रभु जी,
तुम तुम स्वामी हम दासा
ऐसी भक्ति करै रैदासा ।

          है प्रभु !
हमारे मन में जो आपके नाम
की रट लग गई है,
वह कैसे छूट सकती है ?
अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ ।
जो चंदन और पानी में होता है ।
चंदन के संपर्क में रहने से पानी में
उसकी सुगंध फैल जाती है ,
उसी प्रकार मेरे तन मन में
तुम्हारा प्रेम की सुगंध
व्याप्त हो गई है ।
आप आकाश में छाए
काले बादल के समान हो ,
मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ ।
जैसे बरसात में घुमडते
बादलों को देखकर
मोर खुशी से नाचता है ,
उसी भाँति मैं आपके
दर्शन् को पा कर
खुशी से भावमुग्ध
हो जाता हूँ ।
जैसे चकोर पक्षी
सदा अपने चंद्रामा की ओर
ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी
सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए
तरसता रहता हूँ ।
         है प्रभु !
तुम दीपक हो ,
मैं तुम्हारी बाती के समान सदा
तुम्हारे प्रेम जलता हूँ ।
प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल,
पवित्र और सुंदर हो ।
मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ ।
तुम्हारा और मेरा मिलन
सोने और सुहागे के मिलन के
समान पवित्र है ।
जैसे सुहागे के संपर्क से
सोना खरा हो जाता है ,
उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से
शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ ।
हे प्रभु !
तुम स्वामी हो मैं तुम्हारा दास हूँ ।

।। राम राम सा।।

Tuesday, 13 May 2014

होय नचिता रिजे

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
     ।। राम राम सा।।

जब लग आग लगी है नाही।
तब लग फुका दीजे।।
के सुखराम लग्या फिर पीछे।
होय नचिता रीजे।।

आदि सतगुरु महाराज साहेब कहते है जैस चूल्हे में आग जब तक नही लगती तब तक ही फूँका लगाना पड़ता है। एक बार आग जब पकड़ लेती है तो फिर फूँका देंनेकी जरूरत नही होती।
ठीक उसी तरह भजन की बात है। मुखसे भजन आपको उतनाही करना है जबतक वह अखंड नही होता। एकबार वह अखंड हो गया दसवे द्वार परे पहुंच गया की आपको मुख से भजन करने की जरूरत नही।
फिर तो आपकी स्थिति ऐसी हो जाएगी की
करसे माला न जपु ,
मुख से कहूँ न राम।
मेरा सुमिरन हरी करे,
मै पाउ विश्राम।।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरु जी महाराज साहेब।।

Sunday, 11 May 2014

थे किशा राम ने गावो ?

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। सतस्वरुपी राम।।

एक बार आदि सतगुरु जी महाराज से किसीने प्रश्न किया

प्रश्न - थे किश्या "राम" ने गावो ?

उत्तर - आदि सतगुरु जी महाराज ने जबाब दिया जो उन्हीके शब्दोमे -

पांच जिण तत्त बेराट वो थरपियो।।
विष्णु ब्रह्मा हर पैदास किया।।
पीर और शिव शक्त के उपरे।।
दूज कु ज्ञान का मूल दिया।।
अलख आलेख अल्लाय खुदाय सो।।
काल हुणहार उण राम सारे।।
पलक में मांड नर नार से थरपियो।।
छीनक में सबकु मार डारे।।
कागदा उपरे राम मंडे नही।।
मुख में जीभ पर नाय आवे।।
दास सुखराम ब्रह्म ने रट रह्या।।
संत कोई सुरवा भेद पावे।।
रमता राम सु हेत हम बांधीयो।।
बोलता राम सु प्रीत किन्ही।।
देह आकार का नाम सब परहऱ्या।।
अरध उरध बिच सुरत दीन्ही।।
पांच पच्चीस सु राम न्यारा रहे।।
दिष्ट और मुष्ट में नाय आवे।।
धरण पाताल अस्मान सु अगम है।।
क्रोडा मज संत कोई गम पावे।।
पूरण राम भरपूर सो भर रह्या।।
जाय ब्रह्मंड ररंकार ध्याऊ।।
दास सुखराम शब्द अरूप है।।
जिंग सी धुन सु राम गाऊ।।

नही बाप अर माय।
नही बेनर सुन भैय्या।।
नही देश कुल गाव।
नही किन सरणन रैय्या।।
नही ज्ञान गुरु शीश।
नही आपो तन काया।।
नही वार कछु पार।
नही कहूँ जायर आया।।
ऐसा अद्भुत "राम" है।
जा कु सिवरुं बीर।।
ताकू सुन "सुखराम" कहें।
भजियो दास कबीर।।

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।

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Saturday, 3 May 2014

।। भक्ति का फल।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
।। फलफूल।।

प्रश्न - भक्ति और उसका फल .........विस्तृत कीजिए

उत्तर - आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु,सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज ने सभी भक्तिओंके फल विस्तृत से अलग अलग बताये है।

तपश्चर्या का फल - राजा बनोगे।
तीर्थस्नान का फल - रूपवान काया मिलेगी।
व्रत करोगे - निरोगी काया मिलेगी।
देवी की भक्ति करोगे - स्त्री जन्म मिलेगा।
ब्रह्मा की भक्ति / गायत्री मन्त्र - ब्रह्मा के सतलोक में जाओगे।
एक सौ एक यज्ञ करोगे - इंद्र पदवी पाओगे।
विष्णु / नवधा भक्ति - वैकुण्ठ प्राप्ति
शिव की भक्ति करोगे - कैलास में जाओगे।
शक्ति की भक्ति - शक्ति लोक
क्षेत्रपाल/भेरू/भोपा - यमदूत
नीच कर्म - नर्क में जाओगे।
सोऽहं जाप अजप्पा - पारब्रह्म (होनकाल)

उपरोक्त सभी फल तुरंत नही मिलते। इस जन्म में यह भक्ति करोगे तो मृत्यु पश्चात 43,20,000 साल चौरासी लाख योनी भटकानेके बाद अगले जन्म में यह फल मिलता है।
यह भक्तियाँ करनेके पश्चात आवागमन (जन्म-मरण) नही मिटाता।

जन्म-मरण (आवागमन) मिटाना है तो आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु,सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज का सतस्वरुप विज्ञान धारण करके उनका शरणा लेकर श्वास उश्वास में सतस्वरुपी "राम" नाम का सुमिरन करके अपने शारीर मे बारह कमलोंका छेदन करके बंकनाल (पश्चिम) के रस्ते से दसवाँ द्वार खोलकर पारब्रह्म के परे सतस्वरुप आनंदपद - अमरलोक में जाना होगा वह भी जीवित अवस्था में।
मृत्यु पश्चात नही जीवित अवस्था में।

।। फलफूल के अंग से।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।
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Thursday, 1 May 2014

अष्ट प्रहर

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
   ।। प्रश्न-उत्तर।।

प्रश्न- प्रहर क्या है ?
........कितने है ?

उत्तर- 'प्रहर' समय गिनती का एक प्रमाण है। तिन घंटे के समय को प्रहर (पोहोर) कहते है। कुल अष्टप्रहर है।

मै इस भक्ति में नया था तो अनेक संतो के साथ ज्ञान बटोरने हेतु बैठक जमा लेता था तब एक बार जीग्यसुराम जी महाराज (बन बाबा-रहाड़ी बाबा) ने यह कहावत बताई थी। सुनकर बड़ा मजा आया था और दिमाग में सटीक बैठ गयी।

उनकी समझाने की एक अलग शैली थी। वे ज्ञानचर्चा के समय कहावते मुहावरे इनका प्रयोग जादा करते थे।
तो उन्होंने एक बार चर्चा में कह दिया।

पहले पोहोर 'हर कोई' जागे।
दुसरे पोहोर 'भोगी'।।
तीसरे प्रहर 'चोर' जागे।
चौथे पोहोर 'योगी'।।

फिर उन्होंने समझाया प्रहर आठ होते है। दिन के चार और रात के चार। इन्हे अष्ट प्रहर (आठ पोहोर) कहते है।
अब रहाडी बाबा ने यह बात रात के प्रहर की बताई थी क्योंकि चर्चा का समय रात का था। 

पहले प्रहर हर कोई जागे। शाम - 6 से 9
दुसरे प्रहर भोगी।
रात - 9 से 12
तीसरे प्रहर चोर जागे।
मध्यरात्री - 12 से 3
चौथे प्रहर योगी।
सुबह - 3 से 6

(योगी पुरुष इस चौथे प्रहर को पहला प्रहर भी कहते है)

इस प्रकार से अष्टप्रहर है।

उपरोक्त रात के चार प्रहर और निम्न दिन के चार......

पहला प्रहर - सुबह - 6 से 9
दूसरा प्रहर- सुबह - 9 से 12
तीसरा प्रहर -दोपहर 12 से 3
चौथा प्रहर - दोपहर -3 से 6

।। राम राम सा।।
।। आदि सतगुरुजी महाराज साहेब।।

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