।। राम राम सा।।
बाहेर क्रिया बहुबिध करहे।
ज्यां उपजे ताहि फिर खप हे।।
तिन लोक में त्रिगुणी माया।
ब्रह्म धाम चौथे पद पाया।।
ये संसार के जिव बहार की अनेक क्रिया करते है। वे जहाँ उपजते है वही खपते है। जहाँ जन्मते वही मरते। ये तिन लोक त्रिगुणी माया है। परमात्मा का पद चौथा है।
.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।
।। राम राम सा।।
बाहेर क्रिया बहुबिध करहे।
ज्यां उपजे ताहि फिर खप हे।।
तिन लोक में त्रिगुणी माया।
ब्रह्म धाम चौथे पद पाया।।
ये संसार के जिव बहार की अनेक क्रिया करते है। वे जहाँ उपजते है वही खपते है। जहाँ जन्मते वही मरते। ये तिन लोक त्रिगुणी माया है। परमात्मा का पद चौथा है।
.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।
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