Tuesday, 17 December 2013

देस देस का हंसा....


।। राम राम सा।।

देस देस का हंसा आवे।
न्यारी बोळी बेन सुनावे।।
अजर लोक का बायक न्यारा।
बिर्ला लखे सब्द संसारा।।

आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है। इस मृत्युलोक में अलग अलग लोक से हंस आते है। अपनी अलग अलग बोली बोलते है। (जैसे देश विदेश में अलग
अलग बोली बोलते है वह भाषा हमे समझ में नही आती) वैसेही यहाँ अन्य लोग अपने देश की महिमा करता है। मै जो अजर लोक के वाक्य बोलता हूँ। ये अलग है। ये संसार के कोई बिरला ही समझेंगे और भजन (सतस्वरुपी राम नाम का विधियुक्त सुमिरन) के बिना मेरे देश में कोई नही आ सकता।



.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।

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