Wednesday, 18 December 2013

मालिक कहां है.....


साहेब-मालिक-इश्वर-परमात्मा कहाँ है....

जैसे यह दिखाई नही देता....
01) ढोल में जैसे नाद
02) बादल में जैसे बिजली
03) थाली में झन्नाट
04) बाजे में छतीस राग
05) लकड़ी में चकमक
06) पोलाद में पथरी
07) चकमक में आग
08) गन्ने में शक्कर
09) दुध में घी
10) तील में तेल
11) कीड़े में रेशम
12) फुल में सुगंध
13) आत्मा में परमात्मा
जैसे यह बताते नही आता...
14) मछली का रास्ता
15) भवरे की विहंगम चाल
16) स्त्री सुख का वर्णन
17) घी का स्वाद का वर्णन

इस प्रकार से वह परमात्मा चराचर में व्याप्त है।

आदि सतगुरु
सुखराम जी महाराज ने
धन्य हो। धन्य हो।

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Tuesday, 17 December 2013

सुभ कर्म


।। राम राम सा।।

सुभ ही कर्म असुभ ही कवावे।
इन दोनु बिच जक्त बंधावे।।
देता दुःख लेवता सोई।
भूगत्या बिना न छूटे कोई।।

शुभ और अशुभ दोनो भी कर्म ही कहलाते है। इन दोनों कर्मो में जिव संसार से बांधे गये है। ये भोगे बिना नही छूटते।

.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।

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खटराग....

खटरागां साथे करे ,
एकण समचे कोय ।
तो गुण एक न प्रगटे ,
ऐसो ज्ञानी ज़ोय ।
ऐसो ज्ञानी ज़ोय ,
तत्त जागे सो बाणी ।।
वे न्यारा सुण शब्द ,
भेद बिन लखें न प्राणी ।
सुखराम कहे प्रेम वो ,
पुन ही प्रगट होय ।।
खटरागा साथ करे ,
ऐकण समचे कोय ।।

   जैसे छः रागों को एक साथ गाने पर एक का भी गुण प्रगट नहीं होता ।
इसी तरह से जगत के ज्ञानी अनेक साधन व करणीया करते हैं ।उससे करमों का नाश नहीं होता ।
परमात्मा का निज नाम याने ने:अन्छर जब तक प्रगट नहीं होता ।
याने भेद नहीं मिलता तब तक
करमों का नाश नहीं होता ।
सतगुरु विधि से प्रेम से भजन
करने पर ही ने:अन्छर प्रगट
होता हैं ।
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अम्र लोक सु.....


।। राम राम सा।।

अम्र लोक सु म्हे चल आऊं।
झूठ साँच को न्याव चुकाऊ।।
प्रम भक्त बिन मुक्त न होई।
धाम भजन बिन जाय न कोई।।

आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है, मै यहां अमर लोक से चलकर आता हूँ। यहाँ झूठ और सच क्या है (संसार की अन्य भक्ति का ज्ञान-पहुंच-निर्णय) इसका निर्णय बताता हूँ। इस परम भक्ति के बिना मुक्ति नही होगी। भजन (सतास्वरुपी राम नाम का विधियुक्त सुमिरन) के बिना मनुष्य मनुष्य अमर धाम में नही जा सकता।

.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।

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देस देस का हंसा....


।। राम राम सा।।

देस देस का हंसा आवे।
न्यारी बोळी बेन सुनावे।।
अजर लोक का बायक न्यारा।
बिर्ला लखे सब्द संसारा।।

आदि सतगुरुजी महाराज साहेब कहते है। इस मृत्युलोक में अलग अलग लोक से हंस आते है। अपनी अलग अलग बोली बोलते है। (जैसे देश विदेश में अलग
अलग बोली बोलते है वह भाषा हमे समझ में नही आती) वैसेही यहाँ अन्य लोग अपने देश की महिमा करता है। मै जो अजर लोक के वाक्य बोलता हूँ। ये अलग है। ये संसार के कोई बिरला ही समझेंगे और भजन (सतस्वरुपी राम नाम का विधियुक्त सुमिरन) के बिना मेरे देश में कोई नही आ सकता।



.............(अजर लोक ग्रन्थ)
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो। धन्य हो।

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