Friday, 18 January 2013

अजात शत्रु .... आलस

मित्र .....
काफी समय व्यतीत हुआ ....
मिलने लिखनेकी तमन्ना बहुत हुई .....लेकिन ......
जेहन में बहुत उथलपुथल मची हुई थी .....
कुछ मायने एसे बने .....
कंही मायाने घेरा ......
कही अजात शत्रु ....
आलस ने ....
लेकिन अबके एसा समय न आये इसकी पराकाष्ठा करूँगा ....
अत भूल मानव स्वाभाव हैं .......
'टाबर सदा कुटाबर होवे , बाप बिरच नहीं जावे !'
जल्द ही मिलूँगा ....बहुत सारे जवाबोंके साथ ....
शानुपंडित .....पुणे ....

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