गुरू की आज्ञा के बिना भी
सिर्फ विधी युक्त सुमिरण कर
जीव परममोक्ष जा सकता है ?
कृपया विस्तार से बताए
संतो की अनभै वाणी मे
सभी आज्ञा चक्रो की जानकारी मिल जाती है
पर सिर्फ वाणी वाँच कर सुमिरण कर लेने
मात्र से जीव कल्याण संभव है ?
नीरज जी
आपके दोनो उपरोक्त प्रश्नो का उत्तर
एकत्रित करके बताता हूँ
गुरु के आज्ञा बिना
सिर्फ विधि युक्त सुमिरन करना यह
संभव कैसे हो सकता है
इसके लिए
गुरु की आज्ञा से पहले जीव की जरूरत महत्वपूर्ण है
बिन गुरु ( मार्गदर्शक ) आपको
पता ही कैसे चलेगा की विधियुक्त सुमिरन क्या चीज है ?
आपको जो भी बताएगा
वह आपका गुरु ही हुआ
चाहे वह ज्ञान गुरु हो
शब्द गुरु हो
या देहधारी गुरु हो
आखिर ये सभी उपज सतस्वरुप से ही है
जैसे गुरु महाराज कहते है
*पढंते लिखंते सुंनते*
*परमपद पावंते सही*
अब हमे समझना ये है की
हमारा गुरु कौन है
ज्ञान गुरु है शब्द गुरु है की
ये दोनो जिनसे मिले वह देहधारी गुरु है
या जिसने हमे रास्ता बताया वह गुरु है
क्यो की आदि सतगुरुजी महाराज कहते है की
*चले आपणे पाँव धिन्न सो पंथ बतावे*
इनमे से
आप जिसको भी महत्व देते हो वह आपका गुरु है
ये सभी
उसी मालिक की बनी बनाई
श्रुष्टि के आप के जैसे ही जीव है
(ओर उसका मिलना ही मालिक की आज्ञा है की आप परममोक्ष पधारो)
क्यो की जीव तो पांच विषयो मे इतना रचमच गया है की उसको परममोक्ष जाना भी भूल गया है
इसीलिए
आदि सतगुरु महाराज साहेब कहते है की
जिस हंस को परममोक्ष मे मुझे ले जाना है
उसे मेरे संत से मिला देता हूँ
मतलब यहां मिलने वाले
उस मालिक के प्रतिनिधि है जो आपको
मालिक से मिलाने मे मद्त करते है
आपके लिए वे आदरणीय जरूर है लेकिन
वे (आपको मार्गदर्शन करनेवाले ) ये न समझे की
ये जीव उनकी वजह से परममोक्ष मे जा रहा है
वह तो उस मालिक की मर्जी है की
उसको मालिक ने आपका मार्गदर्शक बना दिया
वह भी अपने आप को सामान्य संत ही समझे (न की गुरु या सतगुरु)
क्यो की
सभी आतमाओंके सतगुरु तो
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ही है
तो साँचा सतगुरु है
आदि सतगुरु सर्व आत्माओंके सतगुरु
सर्व श्रुष्टि के सतगुरु सतगुरु सुखराम जी महाराज
और
सत्त नाम है "राम" नाम
ओर रही वाणी की बात
तो बानिजी कहो तो वह भी
*आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज* की ही है
लेकिन हकीकत ये बन बैठती है की
*जीव की अध्ययनता की कमी के कारण
वह खुद को छोटा ओर
मार्गदर्शक (गुरु) को बड़ा समझ लेता है
ओर मार्गदर्शक भी *मानबड़ाई* के कारण खुद को
बड़ा समझने लगता है
है तो सारे ब्रह्म एक जैसे
सिर्फ पराक्रम का फर्क है और कुछ नही
*न तो कोई बड़ा न तो कोई छोटा
सभी जीव एक जैसे है सिर्फ परमात्मा बड़ा है*
और उसी परमात्मा की बाणी से
*सभी स्थानों (आज्ञा चक्र) की जानकारी लिखित रूप मे
मिलती है ओर करारा भजन करने के उपरान्त अनुभव होता है*
*राम राम सा*
(मेरी तरफ से समझाने का प्रयास किया है और भी न समझ मे आये तो फोन पर संपर्क करे)
सिर्फ विधी युक्त सुमिरण कर
जीव परममोक्ष जा सकता है ?
कृपया विस्तार से बताए
संतो की अनभै वाणी मे
सभी आज्ञा चक्रो की जानकारी मिल जाती है
पर सिर्फ वाणी वाँच कर सुमिरण कर लेने
मात्र से जीव कल्याण संभव है ?
नीरज जी
आपके दोनो उपरोक्त प्रश्नो का उत्तर
एकत्रित करके बताता हूँ
गुरु के आज्ञा बिना
सिर्फ विधि युक्त सुमिरन करना यह
संभव कैसे हो सकता है
इसके लिए
गुरु की आज्ञा से पहले जीव की जरूरत महत्वपूर्ण है
बिन गुरु ( मार्गदर्शक ) आपको
पता ही कैसे चलेगा की विधियुक्त सुमिरन क्या चीज है ?
आपको जो भी बताएगा
वह आपका गुरु ही हुआ
चाहे वह ज्ञान गुरु हो
शब्द गुरु हो
या देहधारी गुरु हो
आखिर ये सभी उपज सतस्वरुप से ही है
जैसे गुरु महाराज कहते है
*पढंते लिखंते सुंनते*
*परमपद पावंते सही*
अब हमे समझना ये है की
हमारा गुरु कौन है
ज्ञान गुरु है शब्द गुरु है की
ये दोनो जिनसे मिले वह देहधारी गुरु है
या जिसने हमे रास्ता बताया वह गुरु है
क्यो की आदि सतगुरुजी महाराज कहते है की
*चले आपणे पाँव धिन्न सो पंथ बतावे*
इनमे से
आप जिसको भी महत्व देते हो वह आपका गुरु है
ये सभी
उसी मालिक की बनी बनाई
श्रुष्टि के आप के जैसे ही जीव है
(ओर उसका मिलना ही मालिक की आज्ञा है की आप परममोक्ष पधारो)
क्यो की जीव तो पांच विषयो मे इतना रचमच गया है की उसको परममोक्ष जाना भी भूल गया है
इसीलिए
आदि सतगुरु महाराज साहेब कहते है की
जिस हंस को परममोक्ष मे मुझे ले जाना है
उसे मेरे संत से मिला देता हूँ
मतलब यहां मिलने वाले
उस मालिक के प्रतिनिधि है जो आपको
मालिक से मिलाने मे मद्त करते है
आपके लिए वे आदरणीय जरूर है लेकिन
वे (आपको मार्गदर्शन करनेवाले ) ये न समझे की
ये जीव उनकी वजह से परममोक्ष मे जा रहा है
वह तो उस मालिक की मर्जी है की
उसको मालिक ने आपका मार्गदर्शक बना दिया
वह भी अपने आप को सामान्य संत ही समझे (न की गुरु या सतगुरु)
क्यो की
सभी आतमाओंके सतगुरु तो
आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज ही है
तो साँचा सतगुरु है
आदि सतगुरु सर्व आत्माओंके सतगुरु
सर्व श्रुष्टि के सतगुरु सतगुरु सुखराम जी महाराज
और
सत्त नाम है "राम" नाम
ओर रही वाणी की बात
तो बानिजी कहो तो वह भी
*आदि सतगुरु सुखराम जी महाराज* की ही है
लेकिन हकीकत ये बन बैठती है की
*जीव की अध्ययनता की कमी के कारण
वह खुद को छोटा ओर
मार्गदर्शक (गुरु) को बड़ा समझ लेता है
ओर मार्गदर्शक भी *मानबड़ाई* के कारण खुद को
बड़ा समझने लगता है
है तो सारे ब्रह्म एक जैसे
सिर्फ पराक्रम का फर्क है और कुछ नही
*न तो कोई बड़ा न तो कोई छोटा
सभी जीव एक जैसे है सिर्फ परमात्मा बड़ा है*
और उसी परमात्मा की बाणी से
*सभी स्थानों (आज्ञा चक्र) की जानकारी लिखित रूप मे
मिलती है ओर करारा भजन करने के उपरान्त अनुभव होता है*
*राम राम सा*
(मेरी तरफ से समझाने का प्रयास किया है और भी न समझ मे आये तो फोन पर संपर्क करे)
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