दरिया गीरहि साध की l
तन पिला मन सुख ll
रैन न लागे निंदडी l
दिवस न लागे भूख ll
__________" सतगुरु दरियावजी"
गृहस्थी संत की स्थिति को समझाते हुए
उसके परमात्मा के प्रति होने वाले
विरह के बारेमे सतगुरु दरियाव जी महाराज
कहते है की
उसकी स्थिति ऐसी है
जैसे कोइ प्रियतमा अपने प्रीतम के इंतजार मे
उसका शरीर पिला पड़ जाता है मन सुख जाता है
उदास रहता है
उसको रातोको नींद नही आती ओर
दिन मे उसे भूख नही लगती l
बस ऐसा ही कुछ हाल
संत का होता है
परमात्मा के विरह मे उसका मन सुख जाता है
ओर उसे भूख भी नही लगती ओर
उसकी आस मे उसे रात को नींद भी नही आती
बस मालिक के मिलने की आस बनी रहती है l
ll राम राम सा ll
शानू भाई - पुणे
2 जनवरी 2017
तन पिला मन सुख ll
रैन न लागे निंदडी l
दिवस न लागे भूख ll
__________" सतगुरु दरियावजी"
गृहस्थी संत की स्थिति को समझाते हुए
उसके परमात्मा के प्रति होने वाले
विरह के बारेमे सतगुरु दरियाव जी महाराज
कहते है की
उसकी स्थिति ऐसी है
जैसे कोइ प्रियतमा अपने प्रीतम के इंतजार मे
उसका शरीर पिला पड़ जाता है मन सुख जाता है
उदास रहता है
उसको रातोको नींद नही आती ओर
दिन मे उसे भूख नही लगती l
बस ऐसा ही कुछ हाल
संत का होता है
परमात्मा के विरह मे उसका मन सुख जाता है
ओर उसे भूख भी नही लगती ओर
उसकी आस मे उसे रात को नींद भी नही आती
बस मालिक के मिलने की आस बनी रहती है l
ll राम राम सा ll
शानू भाई - पुणे
2 जनवरी 2017
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