प्रश्न :-
माला फेरत जुग भया
इस साखि का अर्थ बताइये
उत्तर :-
माला फेरत जुग भया
मिटा न मन का फेर
मनका मनका बंद कर
मन का मनका फेर ll
____________"साहेब कबीर"
संत कबीर कहते है यह हाथ मे घुमाने वाली मनके की माला घुमाते घुमाते बहुत युग बित गए
लेकिन यह मन निर्मल नही हो पाया यह मन भौतिक सुखो की चाहत मे आज भी लगा हुआ है
तो ऐसे मनके घुमाकर क्या फायदा ?
उस मनके को घुमाकर मन तो काबू मे नही आया सही जरूरत है "मन" के मनके को घुमाने की जो माया को छोड़कर ईश्वर प्राप्ति की ओर मूड सके उसकी ओर आकर्षित हो सके l
ये बाहरी तुलसी वाला "मनका" घुमाने से कुछ नही होगा हमारा जो "मन" है जो विषय विकारो मे लगा हुआ है उसे विषय विकार छोड़कर ईश्वर की ओर घुमाने की जरूरत है l
ऐसा "साहेब कबीर" फरमाते है l
सतस्वरुप विज्ञान प्रश्नमंच
9765282928 - पुणे
ll राम राम सा ll
माला फेरत जुग भया
इस साखि का अर्थ बताइये
उत्तर :-
माला फेरत जुग भया
मिटा न मन का फेर
मनका मनका बंद कर
मन का मनका फेर ll
____________"साहेब कबीर"
संत कबीर कहते है यह हाथ मे घुमाने वाली मनके की माला घुमाते घुमाते बहुत युग बित गए
लेकिन यह मन निर्मल नही हो पाया यह मन भौतिक सुखो की चाहत मे आज भी लगा हुआ है
तो ऐसे मनके घुमाकर क्या फायदा ?
उस मनके को घुमाकर मन तो काबू मे नही आया सही जरूरत है "मन" के मनके को घुमाने की जो माया को छोड़कर ईश्वर प्राप्ति की ओर मूड सके उसकी ओर आकर्षित हो सके l
ये बाहरी तुलसी वाला "मनका" घुमाने से कुछ नही होगा हमारा जो "मन" है जो विषय विकारो मे लगा हुआ है उसे विषय विकार छोड़कर ईश्वर की ओर घुमाने की जरूरत है l
ऐसा "साहेब कबीर" फरमाते है l
सतस्वरुप विज्ञान प्रश्नमंच
9765282928 - पुणे
ll राम राम सा ll