Monday, 2 January 2017

"मन"का .... मनका

प्रश्न :-
माला फेरत जुग भया
इस साखि का अर्थ बताइये

उत्तर :-

माला फेरत जुग भया
मिटा न मन का फेर
मनका मनका बंद कर
मन का मनका फेर ll
____________"साहेब कबीर"

संत कबीर कहते है यह हाथ मे घुमाने वाली मनके की माला घुमाते घुमाते बहुत युग बित गए
लेकिन यह मन निर्मल नही हो पाया यह मन भौतिक सुखो की चाहत मे आज भी लगा हुआ है
तो ऐसे मनके घुमाकर क्या फायदा ?
उस मनके को घुमाकर मन तो काबू मे नही आया सही जरूरत है "मन" के मनके को घुमाने की जो माया को छोड़कर ईश्वर प्राप्ति की ओर मूड सके उसकी ओर आकर्षित हो सके l
ये बाहरी  तुलसी वाला "मनका" घुमाने से कुछ नही होगा हमारा जो "मन" है जो विषय विकारो मे लगा हुआ है उसे विषय विकार छोड़कर ईश्वर की ओर घुमाने की जरूरत है l
ऐसा "साहेब कबीर" फरमाते है l


सतस्वरुप विज्ञान प्रश्नमंच
9765282928 - पुणे

ll राम राम सा ll

Sunday, 1 January 2017

ll गीरही साध ll

दरिया गीरहि साध की l
तन पिला मन सुख ll
रैन न लागे निंदडी l
दिवस न लागे भूख ll
__________" सतगुरु दरियावजी"

गृहस्थी संत की स्थिति को समझाते हुए
उसके परमात्मा के प्रति होने वाले
विरह के बारेमे सतगुरु दरियाव जी महाराज
कहते है की
उसकी स्थिति ऐसी है
जैसे कोइ प्रियतमा अपने प्रीतम के इंतजार मे
उसका शरीर पिला पड़ जाता है मन सुख जाता है
उदास रहता है
उसको रातोको नींद नही आती ओर
दिन मे उसे भूख नही लगती l
बस ऐसा ही कुछ हाल
संत का होता है
परमात्मा के विरह मे उसका मन सुख जाता है
ओर उसे भूख भी नही लगती ओर
उसकी आस मे उसे रात को नींद भी नही आती
बस मालिक के मिलने की आस बनी रहती है l

ll राम राम सा ll

शानू भाई - पुणे
2 जनवरी 2017