राम राम सा
ll जामो भारी है भारी ll
इस पद का भावार्थ नही
लेकिन भाषांतर जो हिवरा वाले
सेठसाहेब राधाकिसन जी महाराज ने किया है
वह निम्नलिखित है
जामो है भारी है भारी
कोई धोवे सन्त हजारी
जामो है भारी ।। टेर ll
जामो (मनुष्य शरीर रूपी चोला) यह बहूत भारी है
कोई हजारो में से एकाध संत ही इसे धोते है
( शुध्द करते है )
ज्यां धोया जहां अमर हुआ रे
आवागमन निवारी ll
सुर तेहतीस सकळ सो ही बंछे
मिलणो दुलभ विचारी ll १ ll
जिन्होंने इस (मनुष्य शरीर रूपी चोला) को
धोकर साफ़ किया है वे अमर हो गये (जन्म मरण से दूर हो गये)
उनका आवागमन मिट गया
इस मनुष्य शारीर को सभी सुर(देवता) तैतीस (वसु,रूद्र,मारोती आदि) और सभी ही (महर, जन, तप, सत, लोकोंके देव) इस मनुष्य देह की वांछना (चाहना) करते है
वे देव यह मनुष्य शरीर दुर्लभ है (ऐसा विचार करके इसकी चाहना करते है )
जामा माय अन्नत गुण होइ
जे कोई लेत बिचारी ।।
गेली जगत धोय नही जाणे उलटो खुवारी ll २ ll
इस चोले में अनंत गुण है कोई इन गुणो का विचार कर भी लेता परंतू ये पिसे (पक्षपाती, साम्प्रदायि, जो सत्य और झूठ समझते नही, ऐसे मतमतांतर वादी) ऐसे ये (पिसे) संसार के लोग इस चोले को धोना नही जानते इन्होंने मनुष्य शरीर की उलटी खुवारी कर डाली l
कर सु घुपे न लात्या खुंदया पाहण सीस पछाडी
जिण धोया जिण अधरज धोया प्रेम नाव जल डारी।। ३ ll
ये मनुष्य शरीर रूपी चोला (झगा) हांथो से धोया नही जाता है
और लातो से ताड़ने से (तपस्या, उपवास आदि करके तकलीफ देने से ) धोया नही जाता l
इसके धोने की हिकमत बड़ी कठिन और कड़क है l
और पथ्थर के ऊपर माथा पटकने से (पथ्थर की मूर्ति को माथा टेकने से) यह धोया जाता नही l
जिन्होंने जिन्होंने (इस शरीर रूपी) चोले को धोया है
वे किसी भी प्रकार की तकलीफ न देते हुए धोया है
प्रेम से "सतस्वरूपी राम" नाम का पानी डालकर सही ढंग से धोया जाता है
जल सु धुपे न साबुन दिया
किमत कठिन करारी।
मुनिया तपस्यी सिध्या पिरा
धोयो नही लगारी ।। ४ ll
यह चोला (झगा) पानी से (तीर्थ से) धोया नही जाता
इसके धोने की विधि बहुत ही कठीण और कड़क है
पहले के हुए मुनि (जड़भरत, नारद, सुखदेव, बाद्रायणी और व्यास) , तपस्वी (विश्वामित्र, जांजुली आदि ), सिध्द (सिध्द चौरासी हुए कपिलमुनि और गोरखनाथ और पिर चोवीस हो गये इन्होंने भी इस चोले को नही धोया
धोबी कोट निनाणु खशीया
बाल जाल गया फाडी
अन्नत कोटी संता सो धोया कसर न राखी सारी।। ५ ll
पहले भी निन्यानबे कोटि धोबी (कल्याण चाहने वाले) ने धोने के लिए खटपट की (उन्होंने इस चोले को) अच्छा धोया तो नही परन्तु इस मनुष्य शरीर को जलाकर, गाड़कर, फाड़कर, नाश करते गए
पहले भी अनंत कोटि संतो ने भी इसे धोया परंतु इसकी सारी कसर किसीसे भी नही निकली l
पॉच ग्यान तिथंकर पाया
कर गया फगल विचारी ।
जन सुख राम ज धोवने लागा
करडो मतो उर धारी।। ६ ।।
तीर्थंकरो को पांच ज्ञान ( मतज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनपरचे ज्ञान और केवलज्ञान) मिला वे इनको निर्मल करके गए
आदि सतगुरु सुखरामजी महाराज बोले अब मैं भी कड़क मत हृदय में धारण करके धोने के लिए लगा हूँ l
जामो है भारी है भारी ।।
ऐसा यह जामा (चोला, झगा) शरीर भारी है ऐसा आदि सतगुरु सुखरामजी महाराज कहते है l
© सतस्वरूप आनंदपद ने:अंछर निजनाम ग्रन्थ से
भाषांतर कर्ता -
सेठ साहेब
राधाकिसन जी माहेश्वरी
हिवरा (लाहे) धाम
( अरुण जी मैंने संतो के मुख से सूना है की भावार्थ और भाषांतर में फर्क ये है की भावार्थ में संत कहने के पीछे का भाव होता है अब जब संतो का शरीर था तब उस प्रसंग में किस भाव से ये कहा गया होगा ये कहना मुश्किल है वर्तमान कालीन कई संतो ने भावार्थ करने का प्रयास किया भी है लेकिन भावार्थ में लिखने वाले का मत भी आ जाता है इसलिए हिवरा वाले सेठसाहेब ने "भावार्थ न करते हुए भाषांतर" किया मतलब भाषा का अंतर कम किया स्वयं का कोई भी मत उसमे नही डाला जहां समझा नही वहां जगह कोरी छोड़ दी और कहा की "गुरुमहाराज की बात गुरुमहाराज जाने" ये मैंने गुरूजी के मुख से सूना है जो यंहा लिख रहा हूँ इसलिए भावार्थ से भाषांतर अधिक सटीक बैठता है और उसका अर्थ लगता है )