Tuesday, 29 November 2016

ll जामो भारी है भारी ll


राम राम सा

ll जामो भारी है भारी ll
इस पद का भावार्थ नही
लेकिन भाषांतर जो हिवरा वाले
सेठसाहेब राधाकिसन जी महाराज ने किया है
वह निम्नलिखित है

जामो है भारी है भारी
कोई धोवे सन्त हजारी
जामो है भारी ।। टेर ll

जामो (मनुष्य शरीर रूपी चोला) यह बहूत भारी है
कोई हजारो में से एकाध संत ही इसे धोते है
 ( शुध्द करते है )

ज्यां धोया जहां अमर हुआ रे
आवागमन निवारी ll
सुर तेहतीस सकळ सो ही बंछे
मिलणो दुलभ विचारी ll १ ll

जिन्होंने इस (मनुष्य शरीर रूपी चोला) को
धोकर साफ़ किया है वे अमर हो गये (जन्म मरण से दूर हो गये)
उनका आवागमन मिट गया
इस मनुष्य शारीर को सभी सुर(देवता) तैतीस (वसु,रूद्र,मारोती आदि) और सभी ही (महर, जन, तप, सत, लोकोंके देव) इस मनुष्य देह की वांछना (चाहना) करते है
वे देव यह मनुष्य शरीर दुर्लभ है (ऐसा विचार करके इसकी चाहना करते है )

जामा माय अन्नत गुण होइ
 जे कोई लेत बिचारी ।।
गेली जगत धोय नही जाणे उलटो खुवारी ll २ ll

इस चोले में अनंत गुण है कोई इन गुणो का विचार कर भी लेता परंतू ये पिसे (पक्षपाती, साम्प्रदायि, जो सत्य और झूठ समझते नही, ऐसे मतमतांतर वादी) ऐसे ये (पिसे) संसार के लोग इस चोले को धोना नही जानते इन्होंने मनुष्य शरीर की उलटी खुवारी कर डाली l

कर सु घुपे न लात्या खुंदया पाहण सीस पछाडी
जिण धोया जिण अधरज धोया प्रेम नाव जल डारी।। ३ ll

ये मनुष्य शरीर रूपी चोला (झगा) हांथो से धोया नही जाता है
और लातो से ताड़ने से (तपस्या, उपवास आदि करके तकलीफ देने से ) धोया नही जाता l
इसके धोने की हिकमत बड़ी कठिन और कड़क है l
और पथ्थर के ऊपर माथा पटकने से (पथ्थर की मूर्ति को माथा टेकने से) यह धोया जाता नही l
जिन्होंने जिन्होंने (इस शरीर रूपी) चोले को धोया है
वे किसी भी प्रकार की तकलीफ न देते हुए धोया है
प्रेम से "सतस्वरूपी राम" नाम का पानी डालकर सही ढंग से धोया जाता है

जल सु धुपे न साबुन दिया
किमत कठिन करारी।
मुनिया तपस्यी सिध्या पिरा
धोयो नही लगारी ।। ४ ll

यह चोला (झगा) पानी से (तीर्थ से) धोया नही जाता
इसके धोने की विधि बहुत ही कठीण और कड़क है
पहले के हुए मुनि (जड़भरत, नारद, सुखदेव, बाद्रायणी और व्यास) , तपस्वी (विश्वामित्र, जांजुली आदि ), सिध्द (सिध्द चौरासी हुए कपिलमुनि और गोरखनाथ और पिर चोवीस हो गये इन्होंने भी इस चोले को नही धोया

धोबी कोट निनाणु खशीया
बाल जाल गया  फाडी
अन्नत कोटी संता सो धोया कसर न राखी सारी।। ५ ll

पहले भी  निन्यानबे कोटि धोबी (कल्याण चाहने वाले) ने धोने के लिए खटपट की (उन्होंने इस चोले को) अच्छा धोया तो नही परन्तु इस मनुष्य शरीर को  जलाकर, गाड़कर, फाड़कर, नाश करते गए
पहले भी अनंत कोटि संतो ने भी इसे धोया परंतु इसकी सारी कसर किसीसे भी नही निकली l

पॉच ग्यान तिथंकर पाया
कर गया फगल विचारी ।
जन सुख राम ज धोवने लागा
करडो मतो उर धारी।। ६ ।।

तीर्थंकरो को पांच ज्ञान ( मतज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनपरचे ज्ञान और केवलज्ञान) मिला वे इनको निर्मल करके गए
आदि सतगुरु सुखरामजी महाराज बोले अब मैं भी कड़क मत हृदय में धारण करके धोने के लिए लगा हूँ l

जामो है भारी है भारी ।।
ऐसा यह जामा (चोला, झगा) शरीर भारी है  ऐसा आदि सतगुरु सुखरामजी महाराज कहते है l

© सतस्वरूप आनंदपद ने:अंछर निजनाम ग्रन्थ से

भाषांतर कर्ता -
सेठ साहेब
राधाकिसन जी माहेश्वरी
हिवरा (लाहे) धाम

( अरुण जी मैंने संतो के मुख से सूना है की भावार्थ और भाषांतर में फर्क ये है की भावार्थ में संत कहने के पीछे का भाव होता है अब जब संतो का शरीर था तब उस प्रसंग में किस भाव से ये कहा गया होगा ये कहना मुश्किल है वर्तमान कालीन कई संतो ने भावार्थ करने का प्रयास किया भी है लेकिन भावार्थ में लिखने वाले का मत भी आ जाता है इसलिए हिवरा वाले सेठसाहेब ने "भावार्थ न करते हुए भाषांतर" किया मतलब भाषा का अंतर कम किया स्वयं का कोई भी मत उसमे नही डाला जहां समझा नही वहां जगह कोरी छोड़ दी और कहा की "गुरुमहाराज की बात गुरुमहाराज जाने" ये मैंने गुरूजी के मुख से सूना है जो यंहा लिख रहा हूँ इसलिए भावार्थ से भाषांतर अधिक सटीक बैठता है और उसका अर्थ लगता है )

द्विशताब्दी महोत्सव - हिवरा धाम




Monday, 28 November 2016

भज पंछी हरिनाम

।। भज पंछी हरिनाम ... नाम से तीर जासी ।।

यह
नर तन ही
राम भजन का साधन हैं!
इस के समय को व्यर्थ की प्रपंचों में मत गमाओ! जैसे
सागर में पानी सूक जाने पर हंस
उस स्थान को छोड़ कर चले जाते हैं!
एसे ही
इस मानव जन्म की
आयू दिन दिन घटरही हैं
और
कहीं से भी इस के
बढने की संम्भावना नहीं हैं!
आयू पूरी होते ही हमारा जीव रूपी हंश इस शरीर को छोड़ कर चला जाएगा!
और
हम बैटे पत्नी परिवार के मोह में हीं
फंसे रहते हैं
कभी
राम भजन का समय नहीं निकाल पाते!
काळ रूपी शिकारी
हमारे पीछे लगा हुआ हैं
किसी भी समय हमको पकड़ कर
ले जाएगा इसलिये
सचेत होकर राम नाम का सुमिरण करते रहो हाथ में आया हुआ समय प्रतिपल हमारे हाथ से निकलता जा रहा हैं!

राम भजन की बेर
झेर क्यूं करे अयांणा!
सायर सूके नीर
हंश तब चले पयांणा!
दिन दिन तूटे नीर
सीर दूजी नहीं आवे!
बैठो पांख पसार
नारि सुत नेह लगावे!
काळ अहेड़ी संग बहे
पूठ दबाई आय!
रामचरण अब चेतिये
अवसर बीतो जाय!

यह नर तन ही
राम भजन का साधन हैं!
इस के समय को व्यर्थ की प्रपंचों में मत गमाओ!

।। सतगुरु "रामचरण"जी महाराज।।


शानू पंडित
09765282928
09423492193
पुणे - महाराष्ट्र

प्रवर्तक
"मिशन सतस्वरूप"
रामद्वारा पुणे

विनामूल्य सेवा


सतगुरु ... एक खोज


Sunday, 27 November 2016

कैसी असंतुष्टता

एक राजा
का जन्मदिन था।
सुबह जब वह घूमने निकला,
तो
उसने तय किया
कि वह रास्ते मे मिलने वाले
पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश व संतुष्ट करेगा।

उसे एक भिखारी मिला।
भिखारी ने
राजा से भीख मांगी,
तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे का सिक्का उछाल दिया।

सिक्का भिखारी के हाथ से छूट कर नाली में जा गिरा।
भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने उसे बुला कर
दूसरा तांबे का सिक्का दिया।
भिखारी ने खुश होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया
और वापस
जाकर नाली में गिरा सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा को लगा
की भिखारी बहुत गरीब है,
उसने भिखारी को चांदी का एक सिक्का दिया।

भिखारी राजा की जय जयकार करता फिर नाली में सिक्का ढूंढ़ने लगा।

राजा ने अब भिखारी को एक सोने का सिक्का दिया।

भिखारी खुशी से झूम उठा
और वापस भाग कर अपना हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा।

राजा को बहुत खराब लगा।
उसे खुद से तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश एवं संतुष्ट करना है.

उसने भिखारी को बुलाया
और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हूं,
अब तो खुश व संतुष्ट हो ?

भिखारी बोला,
मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूंगा जब नाली
में गिरा तांबे का सिक्का मुझे मिल जायेगा।

हमारा हाल भी
उस भिखारी जैसा ही है।

हमें "सतगुरु" ने नाम रूपी
अनमोल खजाना दिया है और हम
उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है।

राम-नाम बिन कैसे हो,
बेड़ा तेरा पार जी !
श्वास हाथ से जा रहे हैं,
कीमत बेशुमार जी.!!!

..........( संग्रहित)

सास और बहू .....

नई नवेली दुल्हन जब
ससुराल में आई तो उसकी
सास बोली :बींदणी कल
माता के मन्दिर में
चलना है।

बहू ने पूछा : सासु माँ एक
तो ' माँ ' जिसने मुझ जन्म
दिया और एक ' आप ' हो
और कोन सी माँ है ?

सास बडी खुश हुई कि मेरी
बहू तो बहुत सीधी है ।
सास ने कहा - बेटा पास के मन्दिर में दुर्गा माता है
सब औरतें जायेंगी हम भी चलेंगे ।

सुबह होने पर दोनों एक साथ मन्दिर जाती है ।
आगे सास पीछे बहू ।
जैसे ही मन्दिर आया तो बहू ने मन्दिर में गाय की मूर्ति को देखकर
कहा : माँ जी देखो ये गाय का बछड़ा दूध पी रहा है ,
मैं बाल्टी लाती हूँ और दूध निकालते है ।
सास ने अपने सिर पर हाथ पीटा कि बहू तो " पागल " है और
बोली :-,बेटा ये स्टेच्यू है और ये दूध नही दे सकती।

चलो आगे ।

मन्दिर में जैसे ही प्रवेश किया तो एक शेर की मूर्ति दिखाई दी ।
फिर बहू ने कहा - माँ आगे मत जाओ ये शेर खा जायेगा
सास को चिंता हुई की मेरे बेटे का तो भाग्य फूट गया ।
और बोली - बेटा पत्थर का शेर कैसे खायेगा ?

चलो अंदर चलो मन्दिर में, और

सास बोली - बेटा ये माता है और इससे मांग लो , यह माता तुम्हारी मांग पूरी करेंगी ।

बहू ने कहा - माँ ये तो पत्थर की है ये क्या दे सकती है ? ,
जब पत्थर की गाय दूध नही दे
सकती ?
पत्थर का बछड़ा दूध पी नही सकता ?
पत्थर का शेर खा नही सकता ?
तो ये पत्थर की मूर्ति क्या दे सकती है ?
अगर कोई दे सकती है तो आप ......... है
" आप मुझे आशीर्वाद दीजिये " ।

तभी सास की आँखे खुली !
वो बहू पढ़ी लिखी थी,
तार्किक थी,
जागरूक थी ,
तर्क और विवेक के सहारे
बहु ने सास को जाग्रत कर दिया !
अगर
सही भक्ति एवम् मानवता की
प्राप्ति करनी है तो पहले असहायों ,
ज्ञान में भटके हुऐ जरुरतमंदों , गरीबो की सेवा करो
परिवार , समाज में लोगो की मदद करे ।
"अंधविश्वास और पाखण्ड
को हटाना ही मानव सेवा है "

संग्रहित .....

शानू पंडित
09765282928
09423492193
पुणे - महाराष्ट्र

Saturday, 26 November 2016

बिना भजन "सुखराम" कहे ....

व्रत बास एकादशी, करता है निर्धार ।।
बिना भजन सुखराम जी, कदेन पूतन हार ll २९ ll

दान पुन्न जिग बोहो कियो, कंचन तुला चढ़ाय ll
बिना भजन सुखराम जी, धाम कदे नही जाय ll ३० ll
_________________ll घटपरचा ll

आदि सतगुरुजी महाराज कहते है
मनुष्य दान पूण्य व्रत उपवास यज्ञ एकादशी
यह निर्धार करके करता है
इतना ही नही की स्वर्ण तुला भी करले और
उसको भी बाँट दे उसका भी दान करवा दे
लेकिन "भजन" के अलावा उसे परममोक्ष प्राप्त नही होगा
वह अमरलोकधाम नही पहुंचेगा ।

•भजन = आदि सतगुरुजी महाराज ने बताई हुयी विधियुक्त सुमिरन

© सतस्वरूप आनंदपद ने:अंछर निजनाम ग्रन्थ

अधिक जानकारी हेतू संपर्क

शानू पंडित
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रामद्वारा पुणे - मिशन सतस्वरूप

ll राम राम सा ll

Friday, 25 November 2016

मुझे रोज सत्संग की जरूरत है क्या ?

मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ?

 एक बार एक युवक
अपने गुरदेव के पास आया
और कहने लगा , ‘'गुरू महाराज ! मैंने अपनी शिक्षा से
पर्याप्त ज्ञान ग्रहण कर लिया है ।
मैं विवेकशील हूं और अपना अच्छा-बुरा भली-भांति समझता हूं ,
किंतु फिर भी मेरे माता-पिता मुझे निरंतर सत्संग की सलाह देते रहते हैं ।
जब मैं इतना ज्ञानवान और विवेकयुक्त हूं,
तो मुझे रोज सत्संग की क्या जरूरत है ?'’
       
गुरूदेव ने उसके प्रश्न का
मौखिक उत्तर न देते हुए एक हथौड़ी उठाई
और पास ही जमीन पर गड़े एक खूंटे पर मार दी ।
युवक अनमने भाव से चला गया ।
       
अगले दिन वह फिर गुरूदेव के पास आया
और बोला, " मैंने आपसे कल एक प्रश्न पूछा था,
किंतु अापने उत्तर नहीं दिया । क्या आज आप उत्तर देंगे ?"
गुरुदेव ने पुन: खूंटे के ऊपर हथौड़ी मार दी। किंतु बोले कुछ नहीं ।
युवक ने सोचा कि संत पुरुष हैं, शायद आज भी मौन में हैं ।
     
 वह तीसरे दिन फिर आया
और अपना प्रश्न दोहराया ।
गुरुदेव ने फिर से खूंटे पर हथौड़ी चलाई ।
अब युवक परेशान होकर बोला,
‘'आखिर आप मेरी बात का जवाब क्यों नहीं दे रहे हैं ?
मैं तीन दिन से आपसे प्रश्न पूछ रहा हूं ।’'

तब गुरुदेव बोले
‘'मैं तो तुम्हें रोजजवाब दे रहा हूं ।
मैं इस खूंटे पर हर दिन हथौड़ी मारकर
जमीन में इसकी पकड़ को मजबूत कर रहा हूं ।
यदि मैं ऐसा नहीं करूंगा तो इससे बंधे पशुओं द्वारा
खींचतान से या किसी की ठोकर लगने से अथवा जमीन में
थोड़ी सी हलचल होने पर यह निकल जाएगा ।
यही काम सत्संग हमारे लिए करता है ।
वह हमारे मनरूपी खूंटे पर निरंतर प्रहार करता है,
ताकि हमारी पवित्र भावनाएं दृढ़ रहें ।
युवक को गुरुदेव ने सही दिशा-बोध करा दिया।
सत्संग हररोज नित्यप्रति हृदय में सत् को दृढ़ कर असत् को मिटाता है, इसलिए सत्संग हमारी जीवन चर्या का अनिवार्य अंग होना चाहिए ।"

संग्रहित कथा

शानू पंडित
पुणे -महाराष्ट्र
09765282928
09423492193

ll प्रश्न आणि प्रश्न ll सुंदर मेसेज

एक मुलगा बापाला प्रश्न करतो..
मुलगा: - बाबा मला शाळेत शिकवतात की माणूस अगोदर आदिमानव होता. हे खरे आहे काय ?😇😇😇😇😇
बाप: - हो बेटा ,पूर्वी माणसे आदिमानव होते.

मुलगा: -मग ते अंगावर कपड़े का घालत नसत.?
बाप: - नाही बाळ ,माणसांच्या जीवनात हळु -हळु प्रगती झाली. माणसाला थोडे थोडे कळु लागले तेंव्हा तो अगोदर झाडाच्या पानांचे कपड़े घालू लागला...
मग त्याला जसे जसे कळु लागले तसे तो सूधारत गेला व अनेक शोध
लावत गेला. आत्ता जेव्हढे काय आपण पहातो, वापरतो, ते सगळ
माणसांनीच निर्माण केले आहे.

मुलगा: - बाबा मग देव अगोदर होते की माणसे .?😇😇😇😇😇
बाबा: - बाळा देव आगोदर होते. देवानेच सृष्टि निर्माण
केलीये..

मुलगा: - मग बाबा असे कसे काय हो. त्या देवांच्या फोटोत तर कपड़े ,
दागिने ,त्रिशूल, सोने ,भाले ,गदा, पैसे, लाडू ,मोदक असे अनेक काय -
काय दिसते.? त्या वेळेस दागिने तयार करायला सोनार होता का ?
कपड्यांच्या मिल होत्या का ? कपड़े शिवायला टेलर होता का ?
भले ,त्रिशूल ,गधे ,तलवारी बनवणारे कारीगर होते काय ?
लाडू मोदक बनवनारे हलवाई होते कां ?😇😇😇

बाप:- मूर्खा सारखे प्रश्न विचारू नकोस, गप्प बस !
अरे बाळा, ते देव होते. ते काहीही करू शकतात..

मुलगा: - मग आता देव कुठे आहेत बाबा ?
बाप: - अरे देव आपल्याच आजुबाजूला आहेत.

मुलगा:- काय ? देव आहे इथे ?
बाप: - हो बाळा.
मुलगा: - मग त्यांना सांगा ना आपल्या देशातला भ्रष्टाचार मिटवायला,
शेतकर्यांच्या समस्या सोडवायला , त्यांची आत्महत्या थांबवायला, 2 वर्षाच्या लहान मुली पासुन 60 वर्षाच्या बाई पर्यंत बलात्कार रोज होतायत. ते थांबवायला.
तसेच देवालयात कोट्यावधी रुपये साठलेत, ते लोककल्याणा करिता
द्यायची बुद्धि त्या मंदिर प्रशासनाला द्यायला सांगा ना बाबा...

बाबा: - बाळा मी तुला हात जोड्तो, बस्स कर तूझे प्रश्न.
मलाच अजुन कळले नाही. तर मी तूला काय उत्तर देऊ.?
 मला लहानपणापासून जसा देव दाखविला जसा धर्म शिकविला तसाच मी पूजत आणि पाळत आलोय..
मला तुझे हे सगळे कळते रे.. पण सगळं पाळावं लागतं बाबा.. पटत
नसलं तरी गप्प बसावं लागतं..

मुलगा: -- म्हणजे तुम्ही आजपर्यंत तुमच्या बुद्धिचा आणि धैर्याचा वापरच केला नाही. पण बाबा मी तसे करणार नाही. सत्य-असत्य जाणुनच पूढे जाणार. व मला एक खात्री तर पक्की आहे. - या सृष्टीचा निर्माता जसा
असेल ते असेल, पण सगळे धर्म आज शिकवताहेत तसा तर तो बिलकुल नाहीये...

हे ऐकुंन बापाची मान खाली गेली व मुलाची नजर चुकवू लागले.

# आज कमी प्रमाणात असेल, पण कधी ना कधी पुढील पिढीतील मुले असे प्रश्न तुम्हांला नक्की विचारतील हे लक्षात ठेवा..
मग तेंव्हा मान खाली घालण्यापेक्षा आत्ताच चुक सुधारुन घ्या
सगळे करताहेत म्हणून करू नका, कार्यकारण पटले तरच कोणतीही गोष्ट करा..
स्वतःला प्रश्न विचारा..

पुढची विज्ञाननिष्ठ पिढी ही देशासाठी तयार करा.. देवासाठी नको..!!

मला आलेला मेसेज जसा च्या तसा
मूळ लेखक माहीत नाही 

ll सत्संग ll

ll सत्संग ll

संत कबिरानी कर्मकाण्डावर जबर प्रहार करून आपल्या साहित्या मधे खालील उदाहरणा द्वारे सर्वाना सचेत केले आहे

करम गति टारे नाही टरी
मुनि वशिष्ठ से पंडित ज्ञानी
सोध के लगन धरी ll
सीता हरण मरण दशरथ को
बन में बिप्पत परी
करम गति टारे नाही टरी ll
नीच हाँथ हरिश्चंद्र बिकाने
बलि पाताल परी
कोटि गाय नीत पूण्य करत नृप
गिरगिट योनी परी
करम गति टारे नाही टरी ll
पांडव जिनके आप सारथी
तिन पर विपत परी
दुर्योधन को गर्व घटायो
यदुकुल नाश करी ll
करम गति टारे नाही टरी
राहु केतु अरु भानु चन्द्रमा
विधि संयोग परी
कहे कबीर सुनो भाई साधो
होनी हो के रही
करम गति टारे नाही टरी ll

संत कबीर म्हणतात
कर्मगति कोणाच्यानेही कश्याच्याही आणि कोणत्याही विधिने टळत नाही
आपण लग्न मुहूर्त पाहुन विवाह ठरवतो
प्रत्यक्ष मर्यादापुरुषोत्तम "रामचन्द्र" यांच्या विवाहाचा मुहूर्त मोठमोठ्या ऋषि मुनि सहित स्वत: वशिष्ठ मुनिनि पाहिला तरी राज्याभिषेक सोडून वनवासात जावे लागले पुढची कथा सर्वश्रुत आहे ... सीता हरण ... दशरथाचे मरण ... वनातील विपत्ति

पुढे कबीर साहेब म्हणतात
सत्यवान म्हणून राजा हरिश्चंद्र सर्वश्रुत आहे तरी त्याला डोंबाच्या घरी पाणी भरावे लागले
ही कर्मगति होती ती कोणाच्याहीने टळली नाही
नित्य कोटि गायींचे दान करणारा राजाला "सरड्या" च्या योनीत जावे लागले
ही कर्मगति होती ती टळली नाही

नंतर कबीर साहेब म्हणतात
पांडवांचे सारथि साक्षात् श्रीकृष्ण यांच्या यादव कुळाचा नाश झाला ही कर्मगति होती ती कुणाच्यानेही टळली नाही शेवटी पारद्याच्या बाणाने मृत्यु आला ही कर्मगति होती
ती कोणाच्यानेही टळली नाही

शेवटी काय तर

कर्म प्रधान विश्व करी राखा
जिन जस किया तिन तस फल चाखा

कोणत्याही पूजापाठ विधिने कर्म कापल्या जात नाहीत उलट कर्म वाढतात आणि पुन्हा ती भोगावी लागतात
असे संत कबीर म्हणतात

Thursday, 24 November 2016

राम राम स

मन के बहुतक रंग है
छीन छीन बदले सोय
एक रंग मे जो रंगे
ऐसा बिरला कोय
__________' साहेब कबीर '