Sunday, 22 June 2014

।। परम मोक्ष।।

⊙ मिशन सतस्वरूप⊙
****।। परममोक्ष।।****

मोख मोख केता सब कोई।
सो ये मारग होई रे।।
सो परगट किया हम जूग में।
निरख परख लो सोई रे।।
.............................।। आदि सतगुरु।।

वास्तव मैं मोक्ष का रास्ता दसवें द्वार से होकर जाता है। हमारे शरीर के 9 द्वारों से हम परिचित है और इन्ही मैं हम वर्तते है... दो द्वार कानों के छेद है।दो द्वार नाक के छिद्र है| दो द्वार आँखों के छिद्र है| एक द्वार मुंह का छिद्र है| एक द्वार लिंग या योनी का होता| एक द्वार गुदा का होता है| मोक्ष का दसवां द्वार गुप्त है और इसी शरीर मैं है। अगर मनुष्य उसको जान ले और गुरु की बताई साधना कर ले| यदि साधना मैं थोड़ी ऊँचाई प्राप्त कर ले तो जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो जाता है| उसके दसवे द्वार खुलकर उसके परे उसे अखंड ध्वनी सुनाई देगी। ये दोनों ज्ञान 'राम' के मंत्र से होते ही जिन्हे केवल सतगुरु से ही प्राप्त किया जा सकता है ।
यह 'राम' नाम तारक मंत्र है। इसका सुमिरन ब्रह्मा-विष्णू-महेश-शक्ति तथा सभी देवीदेवता करते है।
इसमे "र" कार यह ब्रह्म वाचक अक्षर है और "म" कार यह माया  वाचक अक्षर है। इस माया तथा ब्रह्म के परे वह परमात्मा है। इन दो अक्षरों को श्वास-उश्वास में मथने से इससे "ने:अक्षर" की प्राप्ति होती है और यह "ने:अक्षर" ही सतगुरु की सत्तासे शिष्य के घट में प्रगट होता है। इस "ने:अन्छर" से ही दसवाँ द्वार खुलता है। जगत के सभी मार्ग "होनकाल परब्रह्म" तक ही पहुंचते है। सिर्फ सतगुरु द्वारा "ने:अन्छर" की प्राप्ति किया हुआ जिव ही अपना दसवाँ द्वार खोलकर  होनकाल परब्रह्म के परे "अमरलोक" मे जाता है और अपना "आवागमन" (जन्म-मरण) का चक्र मिटा सकता है।

© संदर्भ ग्रन्थ- "सतस्वरुप आनंदपद ने:अन्छर निजनाम"

।।आदि सतगुरु, सर्व आत्मओंके सतगुरु, सर्व श्रृष्टि के सतगुरु, सतगुरु सुखराम जी महाराज ने धन्य हो, धन्य हो, धन्य हो।।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - रामद्वारा-जलगाव-औरंगाबाद-पुणे.

।। राम राम सा।।

Wednesday, 4 June 2014

।। आदि सतगुरु।।

⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
...।। आदि सतगुरु।।...

प्रश्न - हम सतगुरु सुखरामजी महाराज को
आदि सतगुरु -सर्व आत्माओ के सतगुरु-सर्व सृष्टि के सतगुरु
क्यों कहते है ?

उत्तर - सतगुरु सुखरामजी महाराज जी की "अनभे वाणीजी" में विठ्ठलराव संवाद-कुंडली-६६ में....

"मै सतगुरु हु आद का, आतम का गुरु कवाय।
मेरी महिमा अगम है,
क्या जाने जग माय।।

इस प्रकार से कहा गया है।

वैसे ही ....
"अगाध बोध" ग्रन्थ - चौपाई १५४  में...

"म गुरुदेव सिस्ट सबहिका,
जान मा जाने कोई ।
मोसु मिल्या अगम घर मेलु,
आनंद पद में सोई ।।

इसलिए हम गुरु महाराज को……

मै सतगुरु आद का=आदि सतगुरु,

आतम का गुरु कवाय =सर्व आत्माओ के सतगुरु,

मै गुरुदेव सिस्ट सबहीका=सर्व सृष्टि के सतगुरु

ऐसा संबोधन करते है।

"सतस्वरुप आनंद्पद ने:अन्छर निजनाम ग्रन्थ से"

* आप सभी संतो की जानकारी के लिए *
(उपरोक्त उपाधि की खोज, अभ्यास, मेहनत, लगन का श्रेय गुरु महाराज के प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले हमारे मार्गदर्शक गुरुदेव मा. श्री. जगतपलजी चांडक, प्रवर्तक- रामद्वारा जलगाव इनको जाता है।)

धन्यवाद।

© रामद्वारा-जलगाव
रामस्नेही...शानुभाई...पुणे

।। राम राम सा।।