सतलोक की सकल सुनावां,
वाणी हमरी अखवै ||
नौ लख पटटन ऊपर खेलूं,
साहदरे कूं रोकूं |
व्दाजस कोटि कटक सब काटूं,
हंस पठाऊ मोखूं ||
चौदह भुवन गमन है मेरा,
जल थल में सरबंगी |
खालिक खलक खलक में खालिक,
अविगत अचल अभंगी ||
अगर अलील चकर है मेरा,
जित से हम चल आए |
पांचों पर परवाना मेरा,
काल छुटावन धाये ||
जहाँ ओंकार निरंजन नाही,
बरह्मा विष्णु वेद नाही जाही |
जहाँ करता नहीं जान भगवाना,
काया माया पिण्ड न जिवा ||
पाँच तत्व तीनों गुण नाही,
जोरा काल दीप नहीं जाहीं |
अमर करूं सतलोक पठाँऊ,
तातै कालमुक्ती कहाऊँ ||
।।कबीर साहेब।।
राम राम सा………
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