Wednesday, 24 October 2012

क्या वास्तव में यह सही हैं ? ....

हे मित ....
क्या तुम दुखी हो ? 
चिंतित हो ? 
समस्या है ? 
विपति का सामना कर रहे हो ? 
परेशानी में हो ? 
चाहते कुछ हो - होता कुछ हैं ?
करना कुछ चाहते हो ? हो कुछ जाता हैं ?
इन प्रश्नोंके उत्तर अगर हाँ हैं,.... तो ....
हतबल न हो ! 
बिलकुल विचलित न हो ! 
यदि आपके साथ यह सब हो रहा हैं ! तो यह नयी बात नहीं हैं ! 
कुछ चुनिन्दा महाभाग इसे ''प्रारब्ध'' कहाँ हैं और वे हमें समझाते हैं की इसे हमें भुगतनाही हैं !
मित्र ,
यह सिर्फ हमारे ही साथ नहीं बड़े बड़े महापुरुष, अवतारी पुरुष तथा अनेक महाभागोंके साथ भी हुआ हैं ! 
अब सवाल ये हैं की हमारा जन्म सिर्फ भुगतने के लिया हैं ?
यक़ीनन नहीं ....
हमारा जन्म सिर्फ भुगतने के लिए नहीं बल्कि  भोगने के लिए हैं !
हमारे कुछ अल्प बुद्धि विद्वानोने भोगने का अर्थ सिर्फ भौतिक तथा विषय सुखो तक सिमित कर रखा हैं !
क्या वास्तव में यह सही हैं ?
अगर हमें भोगानाही हैं
तो क्या हम...... चिरकाल निरंतर सच्चा सुख नहीं भोग सकते ? 
जो भौतिक सुखोके परे कहलाता हैं ! 
इन भौतिक तथा विषय सुखोमे चिरकाल निरंतर सच्चा अमर सुख कहा ? 
सच्चा आनंद कहा ? परमानन्द कहा ? 
इन भौतिक तथा विषय सुखो की हमें उब आ रही हैं ! 
क्या इसीमे हम घिरे रहेंगे ?
इनसे छुटकारा नहीं हैं क्या ? क्या हैं हमारा वास्तव विश्राम ?  
मर्त्य शारीर में निरंतर हमारा सफ़र जारी हैं !
जो इस मुकाम पर निरुत्तर सा प्रश्न लेकर हमारे सन्मुख खड़ा हैं !.....
मित्र .....इसलिए ही हैं .....मिशन सतस्वरूप .....
अब पुन मिलेंगे ....उपरोक्त विषय को लेकर .....आज यहीं विश्राम लेते हैं !.........
प्रा. शानुपंडित, 
पुणे. ( India )
+91 94 234 92 193

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