⊙ मिशन सतस्वरुप ⊙
***।। राम राम सा।।***
प्रश्न- कल जब मैंने गुरूजी के संदर्भ में एक अनुभव लिखा तो एक संत ने मुझसे सवाल पुछा की...
आपके गुरु कौन है ?
उत्तर- "मेरे गुरु" इस सज्ञा का श्रेय इन कुछ महानुभावों को जाता है...
.........वे निम्नलिखित है......
इन सबको धन्य धन्य कहना चाहता हूँ। क्योंकि "आदि सतगुरुजी महाराज" कहते है...
चले आपणे पाव....
धिन्न सो पंथ बतावे।।
1) भक्ति में लाने का श्रेय -
* श्री.दिपक पटेल - अग्रिम स्थान इन्हे देना चाहिए क्योंकि इन्होने मेरे लिए अपार मेहनत की अगर ये नही होते तो आज मै कहाँ होता यह मै भी नही बता सकता। इन्हे भोजन की छुट्टी एक घंटे की होती थी ये बीस मिनट में भोजन करके घर में बिविबच्चो के साथ आराम से व्यतीत करने के बजाय चालीस मिनिट मेरे दूकान पर व्यतीत करते और मै इनकी कुछ भी न सुनता एक भी न सुनता विरोध करता। फिर भी ये दुसरे दिन मुझे समझाने और हाजिर हो जाते मै चर्चा में इनका मजाक उडाता उसके बावजूद ये बुरा नही मानते और मुझे सतस्वरुप तथा होनकाल की बाते बार बार समझाते।
ये आजकल भारत में नही है अमरिका में है अगर वे नही होते तो आज मै इस भक्ति में शायद होता या नही होता ये बात गुरुमहाराज ही जाने। इसलिए इनको धन्य कहना चाहता हूँ। इनको (दीपक पटेल साहब को) जिन्होंने भेजा वे "बाविस्कर" नाम के एक गराज मेकेनिक थे। उनको भी धन्य। वे ज्यादा दिन तक भक्ति में नही रहे।
2) ने:अन्छर -निजनाम -
यह ने:अन्छर मुझे "कुद्रती" मिला।
क्योकि मुझे तम्बाखू खाने की आदत थी।
रामद्वारा में कोईभी संत मुझे "शब्द" देने को तैयार नही था। उस समय श्री. गांधी बाबा नामके एक गुजराथी संत थे उन्हें गुरूजी ने शब्द देने की अनुमति दे रखी थी लेकिन वे भी गुरूजी के अनुमति के बिना शब्द नही देते थे। साथ में ही श्री. नागतिलक साहब श्री. चौधरी साहब श्री. दीपक साहब ये ज्ञानचर्चा तथा भजन विधि बताते थे।
मेरी बोहोत चाहना थी की कोई मुझे "शब्द" दे लेकिन किसी भी संत को तम्बाखू बीडी खाने पिने वाले जिव को शब्द देने की अनुमति नही थी।
मै बोहोत धारोधार भजन करता था।
मुझे यह देखना था की ....दसवा द्वार कैसे खुलता है ? और साढ़े तीन कोटि रोमावली से भजन कैसे होता है ? अखंड ध्वनी कैसे सुनाई देती है ?
और एक दिन अचानक मुझे कंठ में हृदय में हृदय से नाभि तक "शब्द" मालूम पडा। फिर कुछ दिन बाद बंक नाल में पश्चात् पीठ की मनका तथा मेरु में ...कुछ दिन पश्चात त्रिगुटी में... इस प्रकार मुझे यह "ने:अन्छर" कुद्रती मिला। फिर मेरी तम्बाखू की आदत भी छुट गयी। फिर दसवाँ द्वार भी खुला। ये सारी बाते मुझे आजभी जैसे के वैसे स्पष्ट रूप से याद है।
3) श्रध्देय जिज्ञासुरामजी महाराज -
जिनका मेरे उपर बेहद प्रेम था जिन्होंने मुझे अपना आश्रम मुझे सौपा अपनी गादी आगे चलाने को अनुरोध किया लेकिन मैंने वह नही स्वीकार किया। जो रात दिन मुझे प्रेरणा देते रहे रात बेरात उठकर प्रश्न करते जवाब मांगते पढ़ते पढने के लिए प्रेरित करते नही आया तो समझाते ऐसे -श्रद्धेय बनबाबा महाराज - धनोडा
4) ओम प्रकाश पाण्डेय -
वक्ता के रूप में ज्ञान जिनसे लिया जिन्होंने मुझे रातदिन "बाणीजी महाराज" से किस प्रकार से जुड़े रहना ये सिखाया साखिया/पद/चौपाई/ कवित्त अन्य संतो की बाणी उसकी चाल पढने का तरीका चाल में चढाव उतार उनका उच्चारण कथा को किस प्रकार से कहना/ समयसूचकता/ हाजिर जवाबी/ चर्चा/ साम/दाम/दंड/भेद इन सब बातों से अवगत कराने वाले- आदरणीय ओम प्रकाशजी पाण्डेय इनका भी मै कुछ वर्षो तक एक अविभाज्य अंग बनके रहा इनको भी धन्य है।
5) मा. जगतपाल जी चांडक (प्रवर्तक-रामद्वारा जलगाव)
जीवन का बोहोत कुछ समय/ज्ञान/समझ/सुध बुध/व्यवहार और भक्ति की गहराई जिनसे मैंने सुनी जिनमे मै अटक गया था। इनके परे मुझे "आदि सतगुरुजी महाराज" भी नही दिखाई देते थे इन्होने मुझे स्वयं में न अटकाए हुए रखकर बार बार आदि सतगुरु जी महाराज क्या है ये बताये ही नही बल्कि समझाये आज आदि सतगुरु जी महाराज क्या है ? ये जिनसे मैंने जाना/ पहचाना/परखा उनकी सुदबुध के साथ जुडा रहा और फिर जुदा हुआ और आज यह ज्ञान/दिशा/हिम्मत/सामर्थ्य जिनकी वजह से है। जीवन का ज्यादा समय जिनके साथ व्यतीत किया जिनको मैंने स्वयं गुरु माना जिनके वर्णन के लिए मेरे पास शब्द नही है ऐसे - रामद्वारा जलगाव के प्रवर्तक - श्रद्धेय जगतपाल जी चांडक इनका मेरे जीवन में आदि सतगुरु जी महाराज के बाद का अतुलनीय स्थान है।
इनके अलावा अनेक संतोसे मैंने कुछ ना कुछ सिखा है / प्रेरणा ली है - वे - बोदेगाव के मोहन महाराज / मंगीराम जी/ लच्छीराम जी / गिरधर जी / दयाराम जी / पाटिल साहेब/ हिवरा में पधारने वाले अनेक संतश्रेष्ठ जिनके नाम याद नही लेकिन चेहरे याद है।
इस प्रकार से मुझे ये सभी गुरुदेव के रूप में मिले।
इन सभी महाभागो का हृदय दे धन्यवाद। मेरे लिए ये सभी धन्य है।
शानू भाई
9865282928
9423492193
।। राम राम सा।।